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अर्बुद प्रकरण
६८३ प्रक्षोभक तथा कर्कटोत्पत्ति-कारखानों की चिमनी स्वच्छ करने वाले लड़कों को कर्कट से व्यथित देखा जाता है ; सूत कातने वालों में भी कर्कट देखा जाता है तथा एक्सरे की प्रक्षोभक किया द्वारा भी कर्कट उत्पन्न होता है । गैस तार (gas tar) या शेल तैल ( shale oil ) के कार्यकर्ताओं में भी कर्कट देखा जाता है। अनीलीन के रंगों के कारघरों में काम करने वालों में भी दुष्ट वृद्धि देखी जाती है। फीबीगर ने यह सिद्ध किया है कि यदि तैलचोर ( cockrcach ) नामक जीव को सूत्रकृमियों द्वारा उपसृष्ट करके उन्हें चूहों को खिलाते रहा जावे तो उनके आमाशय में कर्कट उत्पन्न हो जाया करता है। जापानी विद्वानों में यामागीवा, इचीकोवा तथा सुत्सुई ने देखा है कि यदि शशक की वा मूषक त्वचा को केशरहित करके उस पर तारकोल बराबर कई महीने पोता जाय तो उनकी त्वचा में कर्कटोत्पत्ति हो जाती है। यह सब बतलाते हैं कि अंगों पर प्रक्षोभक का सतत आघात होते रहने से भी कर्कटोत्पत्ति हो सकती है।
प्रतीकारिताजन्य प्रयोग-प्राणी कर्कट के प्रति इतनी अधिक प्रतिकारिता अपने शरीर में रखता है कि कर्कट का रोप बहुधा कर्कटोत्पत्ति में असमर्थ रहता है। यह स्वाभाविक प्रतीकारिता होती है या अवाप्त यह कहना कठिन होता है। परन्तु यह रहती डट कर है। परन्तु प्रतीकारिताजन्य प्रयोगों के द्वारा कर्कटोत्पत्ति के कारणों पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता। __ अबंद और पावित प्रयोग-पेटन रूस ने यह सिद्ध किया है कि कुछ विशिष्ट संकटार्बुद पक्षियों में न केवल रोपण द्वारा ही उत्पन्न किए जा सकते हैं अपि तु कोशा विरहित पावित ( cellfree filtrates ) भी उन्हें उत्पन्न कर सकते हैं। जैसी इस प्रयोग से आशा थी वैसा इसके द्वारा दुष्ट अर्बुदोत्पत्ति के सम्बन्ध कोई विशेष हेतु नहीं प्रकट हो सका क्योंकि कुछ खास अर्बुद ही पावितों द्वारा उत्पन्न हो सकते हैं।
विषाणु उपसर्ग-गाई और बरनार्ड ने १९२५ ई० में अपने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि अर्बुदोत्पत्ति में २ अभिकर्ता कारण भूत होते हैं। एक अभिकर्ता ( agent ) एक प्रकार का सजीव विषाणु होता है जो सब प्रकार के अर्बुदों में पाया जाता है तथा दूसरा अभिकर्ता एक रासायनिक पदार्थ होता है जो विभिन्न अर्बुदों में विभिन्न प्रकार का होता है। उनके इन प्रयोगों की अभी तक पुष्टि ( confirm. ation ) नहीं हो सका है।
न्यासर्ग-न्यासों ( hormores ) के द्वारा दुष्ट अबुदों की उत्पत्ति होना सिद्ध नहीं हो सका। यह हो सकता है कि वे किसी अन्य कारक को उत्तेजना देकर यह क्रिया कराते हों। स्त्रीमदि ( Oestrin ) के कारण वक्ष तथा गर्भाशय दोनों में वृद्धि होने लगती है इस कारण यह तथा अन्य न्यासर्ग अर्बुदकारक होंगे ऐसी कल्पना चलती रही है। पर बहुत अधिक मात्रा में भी इनका उपयोग करने के पश्चात् अर्बुद उत्पन्न होते हुए नहीं पाये गये।
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