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विकृतिविज्ञान सांपरीक्ष भ्रौणिकी-सांपरीक्ष भ्रौणिकी (experimental embryology) के द्वारा बह्वबुंदीय सहलक्षणों ( multiple tumour syndromes ) का स्पष्टीकरण हो जाता है। हैन्सस्पैमैन ने १९१९ ई० में एक संघटनकेन्द्र (organisation centre ) की घोषणा की थी। यह केन्द्र स्यूतीयभ्रूणावस्था (gastrular stage ) में आद्यन्त्र मुख के पश्चओष्ठ पर स्थित होता है। यह केन्द्र वातिक ( चैत ) प्रसीता ( neural groove ), पृष्ट मेरु ( notochord ) और तनुखण्डकों के निर्माण के लिए उत्तरदायी होता है जो भ्रूण के बहिःस्तर ( ectoderm ) की उत्तेजना द्वारा बनाये जाते हैं। ___ महत्त्व की बात इस प्रयोग से यह निकलती है कि यदि, इस केन्द्र से कुछ भी सजीव कोशा किसी ऊति के द्वारा आरोपित हो सके तो एक अतिरिक्त या परजीवी वातिक अक्ष उत्पन्न हो सकता है। यही नहीं यदि पहले इन कोशाओं को उबाल कर मार दिया जावे या उनका दत्तु का निस्सार ( ईथरियल एक्स्ट्रेक्ट) लिया जावे तो वह भी वैसा ही निर्माण करेंगे। इसका अर्थ यह है कि यह प्रतिक्रिया एक रासायनिक पदार्थ की उपस्थिति पर निर्भर करती है जो स्वयं एक प्रकार का सान्द्रव (sterol ) मालूम पड़ता है। यह एक अद्भुत बात है कि यह पदार्थ स्त्री-पुरुष न्यासर्ग, जीवतिक्तियाँ तथा कर्कटजनक स्त्रीमदि से मिलता जुलता होता है। यह खोज नवीनतम ( १९३६ ई०) है जिसे नीढम, वैडिंगटन आदि विद्वानों ने किया है।
चिकित्सात्मक प्रयोग-तेजातु और क्ष-किरणे दुष्ट अर्बुद कोशाओं के विनाश करने में समर्थ होने के कारण चिकित्सा दृष्टि से प्रयुक्त होती हैं । कैंटी तथा डोनल्डसन के प्रयोगों ने यह सिद्ध किया है कि ये किरणें दुष्ट कोशाओं की विभजन या सूत्रिभाजना को मन्द कर देती हैं जिससे उनका प्रगुणन कम हो जाता है। अधिक विकिरण (radiation ) से अनृजु सूत्रिभाजना ( abnormal mitosis) होने लगती है जो प्रकृत कोशाओं को भी नष्ट कर देती है। इससे लसीकोशाओं की भरमार तथा तन्तूत्कर्ष हो सकता है। __ जरायुजीय ऊति का विनाश कर गर्भपात करने की प्रवृत्ति में दक्ष होने के कारण सीस ( lead ) का प्रयोग कोशीय प्रगुणन को रोकने के लिए किया गया है। अकेले सीस प्रयोग से अधिक लाभ न होते हुए भी रेडियम या एक्सरे के साथ सेवन के लिए सीस के प्रयोग से पर्याप्त लाभ देखा गया है। सीस के द्वारा आघातप्राप्त कोशा रेडियम या एक्सरे द्वारा शीघ्र और सरलतया नष्ट हो जाते होंगे यही इसका उत्तर हो सकता है। __ ग्रीन ने अपनी पुस्तक में कर्कट जनक ४ अभिकर्ता लिखे हैं
(१) भौतिक अभिकर्ता, (२) रासायनिक अभिकर्ता, (३) न्यासर्ग अभिकर्ता तथा (४) सजीव अभिकर्ता।
भौतिक अभिकर्ताओं में निम्न लिए गये हैं:अत्यधिक शीत, अत्यधिक ऊष्मा, विविध विकिरण ( various radiations )
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