________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६८२
विकृतिविज्ञान करने वाला वक्तव्य मात्र कहा जा सकता है। मत यह है कि एक प्रौढ में शारीरिक कोशा कभी-कभी अपनी भौण प्रकृति (embryonic characteristics ) में परिणत हो जाते हैं । यह परिवर्तन उनके प्रगुणन ( multiplication ) से अधिक सम्बन्धित होता है। इसके परिणामस्वरूप कोशा-विभजन के समय जो नव कोशा बनते हैं वे प्रौढ़ न बनकर श्रोण प्रकार के अधिक होते हैं। जब कोशाओं में थोड़ी भ्रौणता आ जाती है तो अगली पीढियों में वह और भी बढ़ती चलती है इसका परिणाम अनघटन या अचय ( anaplasia ) में होता है जिसके कारण कोशा जति के लिए आवश्यक प्रकार के न होकर अधिक पूर्वजसम ( primitive ) हो जाते हैं। जितना ही अनघटन अधिक होता है अर्बुद दौष्ट्य उतना ही अधिक देखा जाता है।
परजीववाद-ऐसा कुछ लोगों का मत प्रत्येक काल में रहा है कि अर्बुद निर्माण का कर्ता कोई परजीव ( rarasite ) है। पर यह भ्रान्ति आज समूल नष्ट हो चुकी है। जिनका यह विचार रहा है कि यह किसी विषाणु ( virus ) द्वारा उत्पन्न होता है वह भी अधिक सत्यतायुक्त नहीं प्रगट हो रहा है।
प्रायोगिक कर्कट गवेपणा कर्कट की गवेषणा ( research ) के लिए कई दिशाओं में प्रयोग ( experiments ) किये गये हैं उनसे कोई संतोषजनक हल निकला सो बात नहीं है फिर भी अध्ययन वृद्धि के निमित्त हम यहाँ इनका उल्लेख जैसा जौन पालीवर ने किया है करते हैं
प्राणियों पर प्रयोग-प्राणियों में दुष्ट रोग ( malignant disease ) बहुत कम होते हैं तथा मनुष्यों के दुष्टार्बुदों को प्राणियों में उगाना अत्यधिक कठिन या असम्भव वस्तु है इस कारण प्राणियों पर प्रयोग करते हुए कर्कटोत्पत्ति का ज्ञान प्राप्त करना बहुत कठिन हो गया है। तुद प्राणियों में जो कुछ प्रकार के अर्बुद पाये जाते हैं उन्हीं के बल पर थोड़ी बहुत सहायता इन प्राणियों से मिलती है फिर भी इन प्राणियों से जो कुछ प्राप्त होता है वह कम महत्त्व का नहीं है।
जैनसन द्वारा यह तथ्य प्रकाश में आया है कि एक प्राणी के अर्बुद कोशाओं का रोपण यदि उसी वर्ग के प्राणी में कर दिया जावे तो रोपित अर्बुदीय कोशाओं का ही इस प्राणी में प्रगुणन होता है उस प्राणी की ऊति के कोशा इस प्रगुणन में कोई भाग नहीं लेते हैं। दूसरा तथ्य जो प्रकाश में आया है वह यह है रोपित प्राणी की ऊतियाँ इस रोपण को एक बाह्य वस्तु (foreign body ) के समान समझती हैं जिसके कारण इस रोप( graft ) को हटाने के लिए भक्षिकोशा समीप में संचित होते हैं जो कभी-कभी उसे हटाने में समर्थ हो जाते हैं ।
रसेल ने जैनसन के कार्य को आगे बढाते हुए यह सिद्ध किया है कि रोपित अर्बु की रक्षा प्राणी की उतियाँ करती हैं और भक्षकायाणुओं से उसे बचाती हैं। इन उतियों की संधार प्रतिक्रिया ( stroma reaction ) यदि तीब हुई तो अर्बुद बच जाता है पर यदि यह दुर्वल हुई तो रोपित अर्बुदीय कोशा शीघ्र नष्ट हो जाते हैं ।
For Private and Personal Use Only