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तृतीय अध्याय
ऊतिमृत्यु या ऊतिनाश ( Tissue Necrosis )
हमारा शरीर असंख्य वा अपरिसंख्येय कोशाओं ( cells ) 'जिन्हें आयुर्वेद देहपरमाणु कहता है' द्वारा निर्मित होता है । ये कोशा भी अनेक प्रकार के होते हैं । इनके एक प्रकार के समूह से एक प्रकार की और दूसरे प्रकार के समूह से दूसरे प्रकार की उतिओं का निर्माण होता है । ऊतियों (tissues ) के अनेक प्रकार मानवशरीर में पाये जाते हैं उनमें कुछ के नाम निम्नांकित है।
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योजीऊति ( connective tissue ), ग्रन्थ्याभ ऊति ( adenoid tissue ), वपा ऊति ( adepose tissue ), अन्तरालित ऊति ( areolar tissue ), fafag afa (cancellous tissue), after fa (cartilagenous tissue), प्रत्यास्थ ऊति ( elastic tissue ), अन्तश्छदीय ऊति (endothelial tissue), अधिछदीय ऊति ( epithelial tissue ), तान्तव ऊति ( fibrous tissue ), श्लिषीय ऊति ( gelatinous tissue ), ग्रन्थिक ऊति ( glandular tissue ), कन ऊति ( granular tissue ), अन्तरालीय ऊति ( interstitial tissue ), अन्तरनाल ऊति ( intertubular tissue ), लसीक ऊति ( lymphoid tissue ), श्लेष्माभ ऊति (mucoid tissue ), पेशी ऊति ( muscular tissue), चैत ऊति ( nervous tissue ), आदि आदि । इन धातुओं का आद्योपान्त प्राकृतिक वर्णन शरीरव्यापार शास्त्रान्तर्गत औतिकी ( Histology ) के अध्ययन के समय समझा जा चुका है । हम इस अध्याय में शरीरनिर्मात्री विभिन्न ऊतियों के ह्रास, विनाश वा क्षर्ति का सर्वसामान्य आधुनिक वर्णन करेंगे । इसका सूक्ष्म सा आभास हमने भूमिका में कर दिया है जिससे लाभ उठाया जा सकता है I
ऊतिनाश के ३ प्रमुख कारण
निम्नाङ्कित ३ कारणों में से किसी के अथवा सभी के उपस्थित होने से सर्वसामान्य ऊतिमृत्यु तत्तत् ऊति विशेष में देखी जाती है :
१. पोषण में बाधा
२. रासायनिक विषों एवं भौतिक कर्ताओं की क्रिया
३. रोगाण्विक विषयाँ ( bacterial toxins )
पोषण में बाधा
जब ऊति को पुष्ट करने के लिए आवश्य सामग्री वहाँ तक नहीं पहुँच पाती तब भी ऊति का नाश हो सकता है ।
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