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ज्वर
४६५ है। इसमें स्थानिक वेदना जितनी महत्त्वपूर्ण होती है उतनी ज्वर की वृद्धि या अन्य शारीरिक विकृति नहीं हुआ करती।
अविराम ज्वर का एक महत्त्व का कारण मलेरिया भी हो सकता है। हमारे पास अनेकों रोगी अविराम ज्वर के आये जिन्हें लोगों ने टी. बी. कह कर छोड़ रक्खा था पर वे दो-दो चार क्विनीन की सूइयों से ठीक होकर चले गये। ___ आधुनिक काल में मैक्स्वीनी के मत से ज्वर का एक कारण इलेक्शन भी है । सुई जहाँ लगाई जाती है वहाँ यदि एक छोटी विद्रधि उत्पन्न हो गई तो उसके कारण लगातार ज्वर पाया जा सकता है । वह लिखता है।
If you can not find any cause for a swinging temperat. ure associated with sweats without undue toxaemia, dia. rrhoea, heart abnormalities, or tropicel implications, think of this as a possible cause.' यदि बढ़ते हुए तापांश जिसके साथ प्रस्वेद हो पर विषमयता अतीसार, हृद्तविकार या उष्णकटिबन्धीय कोई विशेषता न मिले तो आप को समझ लेना चाहिए कि सुई भोंकने के स्थान पर गहराई में बनती हुई एक विद्रधि है । पुरदिल नगर (अलीगढ़) के समीप एक महिला को इसी प्रकार की विधि नितम्ब ( buttock ) प्रदेश पर बनी जिसमें से लगभग ३ सेर पूय का मुझे निर्हरण करना पड़ा।
अतिरक्तिमायुक्त उत्कोठ-अतिरक्तिमा ( erythema ) त्वचा की लाली है जिसके अनेकों कारण हो सकते हैं। रक्त वर्ण उत्कोठ ( erythematous rash ) इस नाम से हम इसे पुकारते हैं । रक्तवर्ण उत्कोठ लोहित ज्वर, रोमान्तिका आदि रोगों में देखा जाता है। लोहित ज्वर में उत्कोठ सम्पूर्ण शरीर पर दूसरे दिन चेहरे को छोड़ कर निकलता है। जीभ विशल्कित हो जाती है, गले में अधिरक्तता पाई जाती है। रोमान्तिका में प्रसेक या प्रतिश्याय महत्वपूर्ण होता है। इसके कारण आँखों से आँसू , नाक से नाव, कास, क्षवथु और तीन दिन तक ज्वर ये लक्षण पाये जाते हैं। चौथे दिन ज्वर १०३° तक पहुँच जाता है। ज्वर उससे ऊपर भी जा सकता है। उत्कोठ (रैश) कानों के पीछे से आरम्भ होकर चेहरे पर पहुँच कर अगले २४ घण्टों में सम्पूर्ण शरीर पर छा जाता है। यह उद्वर्णिक ( macular ) होता है। उद्वर्ण एक साथ मिल कर बड़े-बड़े सिध्म भी बना देते हैं। जिनके बीच में त्वचा के क्षेत्र होते हैं । स्पर्श में यह मखमली लगता है ज्वर दाने उगने तक बढ़ता है फिर यदि अन्य उपद्रव न हुआ तो शान्त हो जाता है। जर्मन रोमान्तिका ( rubella ) लोहित ज्वर तथा रोमान्तिका दोनों से ही मिलती है। यह रोग तरुणों में अधिक पाया जाता है। इसमें प्रसेकीय लक्षण बहुत साधारण होते हैं आँखें सुर्ख, थोड़ी छींके या खाँसी रहती है मुख पाक कदापि नहीं मिलता कौपलिकसिध्म जो रोमान्तिका में मिलते हैं, यहाँ नहीं मिलते । पश्चप्रैविक, कक्षीय और वंक्षणप्रदेश की लसग्रन्थियों में थोड़ी वृद्धि पाई जा सकती है पर यह वृद्धि मटर से अधिक बड़ी नहीं होती। मुख की श्लैष्मिककला ठीक देखने
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