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यक्ष्मा
अब हम पाठकों से प्रार्थना करते हैं कि वे शरीरस्थ क्षारातु (सोडियम) तथा दहातु (पोटाशियम) की खोज करें। वे देखेंगे कि हमारे रक्तरस में तथा अन्य शरीरस्थ तरलों में क्षारातु के लवण रहते हैं तथा उतिकोशाओं के प्ररस ( cytoplasm ) में दहातु के लवण रहते हैं। हारातु और दहातु स्वस्थावस्था में प्रायः अपना स्थान एक दूसरे से परिवर्तित नहीं करते। पर जब उपवृक्क बाह्यक में रोग होने से बायक न्यासर्ग की उत्पत्ति में कमी आती है तो वृक्क नालिकाओं की पुनर्पेषणी क्रिया ढीली पड़ जाती है जिसके कारण मूत्र में होकर क्षारातु और नीरेय (क्लोराइड्स) पर्याप्त मात्रा में बाहर चले जाते हैं। क्षारातु के निरन्तर बाहर जाने के कारण शरीर के तरलों में इस तस्व की कमी हो जाती है उस कमी को भरने के लिए कोशाप्ररस में स्थित दहातु के अयन (ions ) तरलों में आने लगते हैं ताकि आसृतीय निपीड ( osmotic pressure ) की गड़बड़ी न पड़ सके। फिर भी रक्तरस का क्षारातु. दहातु अनुपात गिर जाता है तथा दहातु-चूर्णातु अनुपात बढ़ जाता है। दुग्धपिगि (रीबोफ्लेवीन) या जीवति ख २ शरीर की ऊतियों में जारण क्रियाएँ या समवर्त या चयापचयिक क्रियाएँ कराती रहती है। वह बाह्यक न्यासर्ग के विना पंगु होती है इस कारण वृक्कनालिकाओं के अधिच्छदीय कोशागुच्छिकाओं द्वारा प्रदत्त मूत्र में से द्वारीय पदार्थों ( threshold substances ) का पुनर्वृषण करने में असमर्थ हो जाती है और लवण के दोनों घटक क्षारातु और नीरेय शरीर से सरलतापूर्वक बाहर चले जाते हैं। शरीर के तरलों में इसी कारण दहातु बढ़ता चलता है। दहातु स्वयं एक अवसादक पदार्थ है और वह मांसपेशियों का अवसाद करके थकावट बढ़ा देता है। यह जो इस रोग में उत्तरोत्तर वृद्धिंगत श्रान्ति मिलती है उसका कारण इस दहातु का आधिक्य है । जब कभी भोजन में दहात्वीय पदार्थ अधिक हो जाते हैं या शरीर में लवण की कमी और भी कर दी जाती है तो यह श्रान्ति बहुत अधिक बढ़ जाती है और रोग का दौरा सा हो जा सकता है। यदि किसी भी मार्ग से शरीर में लवण या नमक पर्याप्त मात्रा में पहुँचा दिया गया तो वह कष्ट कुछ काल के लिए हट सकता है।
ऊतियों की जारणक्रिया में इस बायकन्यासर्ग (cortical hormone) की कमी के कारण जो बाधा पड़ती है उसका दूसरा परिणाम यह होता है कि पेशियाँ और यकृत् उतने वेग से अब मधुजन का निर्माण करने में असमर्थ हो जाते हैं जिसके कारण पेशियों द्वारा शर्करा का उपयोग घट जाता है जिसके कारण उत्तरोत्तर मांसक्षय और बलहानि होती चली जाती है तथा मूलचयापचय ( basal metabolism) कम हो जाता है। इन सबके परिणामस्वरूप हृदौर्बल्य खूब हो जाता है । धातुओं की जारण क्रिया के तीव्र करने में इस न्यासर्ग का जितना महत्व है उसे ध्यान में रखकर आजकल कई चिकित्सात्मक चमत्कार किए जा रहे हैं।
शरीर से नीरेय मूलक ( chloride radical ) की कमी होने से उपनीरोदता (hypochlorhydria ) या अनीरोदता ( achlorhydria) हो जाती है जिसके कारण मन्दाग्नि का होना एक अन्य महत्व का लक्षण होता है।
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