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विकृतिविज्ञान बहर्बुदों ( multiple tumours ) में यह पहचान नहीं की जा सकती है कि प्रारम्भ में एक अर्बुद से उत्तरजात अन्य अर्बुद उत्पन्न हुए हैं या बहुकेन्द्रीय उत्पत्तिस्थल से एक साथ बहुत से अर्बुद बने हैं। बह्वर्बुदों का एक उदाहरण बहुमज्जकार्बुद (multiple myeloma) का है और दूसरा लससंकटार्बुद (lympho sarcoma) का । त्वचा तथा आन्त्र में प्राथमिक दुष्ट बह्वर्बुद मिलते हैं। कभी-कभी अनेक स्थानों पर एक साथ प्राथमिक अर्बुद उत्पन्न होते हुए देखे जाते हैं ।
कभी-कभी शवपरीक्षण करने पर अनेक उत्तरजात अर्बुद तो मिलते हैं पर प्राथमिक अर्बुद का कोई पता नहीं लगता। हो सकता है कि प्राथमिक अर्बुद एक ग्रन्थिका के रूप में नासाग्रसनी, पुरुषवक्ष, पुरःस्थग्रन्थि या श्वसनिका में स्थित हो और जिसकी उपेक्षा कर दी गई हो।
पुनः रोपण-बीजग्रन्थि के कर्कट द्वारा उदरच्छद में कर्कटोत्पत्ति पुनःरोपण का एक उदाहरण है। बीजग्रन्थि से कर्कटकोशा उदरच्छद पर आरोपित हो जाते हैं और कालान्तर में उत्तरजात अर्बुद को जन्म देते हैं। बस्ति का अंकुरकर्कटार्बुद ( papi. llary cancer of the bladder ) एक स्थान पर होता है। वहाँ से कर्कटकोशा बस्ति की श्लेष्मलस्वचा पर अन्यत्र जम जाते हैं और बस्ति में ही अन्य उत्तरजात अङ्करकर्कटार्बुद को जन्म दे देते हैं। ___एक अर्बुद को दूसरे के शरीर में पुनः रोपित करना एक शंकामात्र है ऐसा कुछ लोग मानते हैं । यह शंका वास्तविक है या नहीं इसे नहीं कहा जा सकता।
अर्बुदों के प्रसार के सम्बन्ध में जो कुछ हमने कहा है उससे यह पता लगता है कि प्राथमिक अर्बुद के समान अन्य अर्बुद (1) प्रथम अर्बुद के समीपस्थ प्रवेश में बन सकते हैं, (२) समीपस्थ लसीकाग्रन्थि में बन सकते हैं अथवा (३) अन्य दूरस्थ अंगों वा ऊतियों में बन सकते हैं।
__ कभी-कभी जब एक स्थान से अर्बुद का उच्छेद कर दिया जाता है तो पुनः वहाँ पर अर्बुद की उत्पत्ति देखी जा सकती है । अर्बुद की पुनरुत्पत्ति अर्बुद दौष्टय का लक्षण नहीं है यद्यपि दुष्टार्बुदों में यह लक्षण बहुत अधिक देखा जाता है। __ लसधारा द्वारा सदैव दुष्टाबंदों का गमन हुआ करता है। लसीकाग्रन्थियों के अन्दर जो अर्बुद द्वितीयक या उत्तरजात रूप बनते हैं उनके कारण लसीकाग्रन्थियाँ कड़ी तथा प्रवृद्ध हो जाती हैं यदि उन्हें अण्वीक्ष द्वारा देखा जाये तो उनमें प्राथमिक अर्बुदिक कोशाओं के सहश कोशा दिखलाई देते हैं जो ग्रन्थि की स्वाभाविक रचना को ध्वस्त कर देते हैं। आरम्भ में तो केवल अण्वीक्ष द्वारा ही दुष्ट कोशा देखे जासकते हैं पर बाद में प्रन्थि का छेद लेने पर वृद्धि का श्वेत सघन पुंज सरलतापूर्वक देखा जासकता है । दुष्टार्बुदों के द्वारा वैषिक चयापचयों (toxic metabolites) जैसे बनाये जाते हैं इस कारण उस प्रदेश की लसीकाग्रन्थियों में उनके कारण जीर्ण व्रणशोथात्मक परिवर्तन भी देखने में आते हैं इससे पहले कि उनमें दुष्टार्बुदीय आक्रमण हो । इसलिए
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