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अर्बुद प्रकरण
६७३ दुष्ट तथा साधारण अर्बुदों में अन्तर दुष्ट अर्बुद ( malignant tumours ) की अपनो एक विशिष्ट जाति होती है जो साधारण अर्बुद जाति से कई अंशों में विभिन्नता रखती है। नीचे हम दुष्ट अर्बुदों की इन विभिन्नताओं की ओर अंगुलिनिर्देश करते हैं :
(१) दुष्ट अर्बुद का यदि योग्यरीत्या उपचार न किया जावे तो वह रोगी की मृत्यु बुला सकता है । दुष्ट अर्बुद चाहे कितने ही साधारण अंग में हो जैसे हाथ या पैर में परन्तु वह मृत्युकारक होता है। इसके विपरीत साधारण अर्बुद के द्वारा मृत्यु तब तक होना सम्भव नहीं जब तक कि वह किसी विशिष्ट मर्मस्थल पर न हो।
(२) दुष्ट अर्बुद सदैव जिस स्थान में उगता है वहाँ के समीपस्थ अंगों में भी अपने कोशा भेजता है और भरमार ( infiltration ) कर देता है मानो कि वह अपने पंजों में आसपास के सम्पूर्ण क्षेत्र को जकड़ता जा रहा हो। इसके पास कोई प्रावर ( capsule ) नहीं होता । साधारण अर्बुद सदैव एक प्रावर में वन्द होता है। इस भरमार के २ कारण हो सकते हैं-एक तो उनका भार और दूसरे उनके द्वारा उत्पन्न विषाक्त चयापचयिक उत्पाद ( toxic metabolites ) जो समीप के अंगों में विष का संचार कर देते हैं।
(३) उच्छेद कर देने पर भी दुष्ट अर्बुद की पुनरुत्पत्ति होती है । इस पुनरुत्पत्ति के २ कारण बतलाये जाते हैं। एक तो यह कि उच्छेद करते समय दुष्ट अर्बुद के कुछ कोशा अपने स्थान पर ही छूट जाते हैं जो दो चार, दस बीस वर्ष में पुनः दुष्ट अर्बुद उत्पन्न कर देते हैं। इस प्रकार अर्बुद की पुनरुत्पत्ति मूलस्थान पर भी देखी जा सकती है तथा थोड़ा इधर-उधर हट कर भी। स्तनकर्कट के उच्छेद करने पर फुफ्फुसों में बीस वर्ष बाद फिर से कर्कटोत्पत्ति इसका उदाहरण है। दूसरा यह कि मूलस्थान के सर्वसाधारण कोशा कालान्तर में दुष्ठअर्बुदिक कोशाओं में परिणत हो जा सकते हैं जिसके कारण मूलस्थान में ही पुनः एक नवीन दुष्ट अर्बुद की उत्पत्ति हो सकती है।
(४) यह नियम है कि दुष्टअर्बुद की वृद्धि बहुत शीघ्रता से हो । वृद्धि का अर्थ है कोशाओं का विभजन जल्दी-जल्दी हो । साधारण अर्बुदों में कोशाविभजन या सूत्रिभाजना होती हुई सरलता से देखी जाती है। एक एक कोशा २,३ तथा ४ भागों तक में बंट जाता है। न्यष्टि के ये २,३ या ४ टुकड़े जो होते हैं वे एक बराबर के नहीं होते इसी कारण दुष्ट अर्बुद कोशाओं की न्यष्टियाँ बहुरूपीय और बह्वाकारी देखी जाती हैं जब कि साधारण अर्बुद के काशाओं की न्यष्टियाँ एकरूपीय तथा एकाकारी होती हैं। ये न्यष्टियाँ अभिरंजन करने पर गहरा रंग लेती हैं ( hyperchromasia-परमवर्णिकता )।
साधारण औतकीय छेदों ( sections ) को अण्वीक्ष यन्त्र के नीचे रखने पर जो कोशा चित्र देखा जाता है वैसा दुष्ट अर्बुद के छेदों में नहीं मिलता।
५७, ५८ वि०
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