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विकृतिविज्ञान शारीरिक ऊति के साथ पूर्णतः समता रखती है। साधारण अर्बुद अधिच्छदीय और संयोजी दोनों प्रकार की ऊतियों में से किसी भी प्रकार का हो जा सकता है तथा दोनों के मिश्रण से भी बन सकता है। उसके चारों ओर तान्तवऊति का एक अच्छा प्रावर चढ़ा होता है इस प्रावर (कैपसूल) में से अर्बुद को पूर्णतया निकाला भी जा सकता है। इसका कारण यह है कि साधारण अर्बुद की भरमार समीपस्थ अतियों वा अंगों में नहीं हुआ करती। इसी कारण एक बार इसका मूलोच्छेद कर देने पर उसकी पुनरुत्पत्ति प्रायशः देखी नहीं जाती जब तक कि वह अपूर्ण रूप से न निकाला जावे या उसके कारण प्रन्थियों में उत्तरजात वृद्धियाँ न उत्पन्न हुई हों। कहीं-कहीं ऐसा भी देखा गया है कि साधारण अर्बुदों में प्रगुणन होकर इतस्ततः उत्तरजातवृद्धि के रूप में प्रसार हुआ हो। इसका एक उदाहरण बस्ति का अङ्कुरार्बुद है । प्रारम्भ में यह जहाँ बनता है उसके कण मूत्र मार्ग से उत्सृष्ट होते रहते हैं और प्रथम अबुंद के नीचे अन्य कई वृद्धियाँ बन जाती हैं। इसी प्रकार बीजग्रन्थि के अङ्कुरीय मृदु कोष्ठकीय अर्बुद ( papillary benign cystic tumour ) जब उदरच्छदीय स्यून ( peritoneal sac ) में फूट जाते हैं तो उनमें से अर्बुदीय कोशा स्वतन्त्र हो जाते हैं और वे उदरच्छदीय गुहा में कहीं भी उग आते हैं। ____ नामतः मृदु होते हुए भी साधारण अर्बुदों के द्वारा मृत्यु या गम्भीरावस्था होने की भी सम्भावना रहती है। यह दो अवस्थाओं में देखी जाती है एक तब जब उनसे अत्यधिक रक्तस्राव होता हो और दूसरे तब जब उनके भार से कोई महत्त्वपूर्ण अंग दब गया हो और उसकी क्रिया में असाधारण बाधा उत्पन्न हो गई हो। जब आँत का अवरोध कोई अर्बुद कर दे या मूत्रस्राव न होने दे तो उस अवस्था में गम्भीर अवस्था उत्पन्न हो जाती है । मस्तिष्क में स्थित साधारण सा अर्बुद भी मृत्युकारक हो जाता है क्योंकि वहाँ अन्तःकरोटीय तति की निरन्तर वृद्धि होने लगती है।
अण्वीक्षतया अध्ययन करने पर एक साधारण अर्बुद में निम्न विशेषताएँ देखने में आती हैं:
(१) उसके कोशाओं का विन्यास ( arrangement ) नियमित रहता है।
(२) ग्रन्थिकीय अर्बुदों में कोशा अधःस्तृत कला ( basement membrane ) पर विन्यस्त रहते हैं यदि वह कला उपलब्ध हो।
(३) कोशाओं की न्यष्टियाँ एक बराबर की होती हैं, आकृति में नियमित होती हैं तथा उनमें सक्रिय सूत्रिभाजना | active mitosis) नहीं पाई जाती है।
(४) साधारण अधिच्छदीय अर्बुदों में कोशा एक से अधिक स्तर मोटे होते हैं उनमें कोशाओं की संख्या अपनी पितृ उति से कहीं अधिक होती है।
(५) संयोजी ऊतियों के साधारण अर्बुदों में भी कोशा पितृ अति से अधिक संख्या में होते हैं।
(६) इन अर्बुदों के कोशाओं का प्रगुणन इतना अधिक होता है कि अंग की क्रिया की दृष्टि से आवश्यक कोशाप्रगुणन को पार कर जाता है।
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