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विकृतिविज्ञान सम्पूर्ण बहिरन्तर्भवावस्था के विक्षतों के साथ वाहिनियों में परिवर्तन धमन्यन्तश्छदपाक तथा सिरापाक अवश्य देखा जाता है और यह परिवर्तन उपरिष्ठ या गम्भीर किसी भी शरीरावयव में मिल सकता है।
यह तन्त्वाभजारठ्य क्या है ?
शरीररचना की दृष्टि से, शरीरावयव में लगे हुए विशिष्ट कोशाओं का विनाश होकर उनके स्थान पर व्रणशोथात्मक कणनऊति का प्रगुणन हो जाना जिससे तन्तूस्कर्ष का होना तथा व्रणवस्तु (scar tissue ) का बनना यही तन्त्वाभ जारठ्य में देखा जाता है। कणनऊति की भरमार सम्पूर्ण शरीरावयव में एक सी भी हो सकती है और कहीं कहीं तथा कभी कभी शरीरावयव में इतस्ततः स्वस्थ ऊति बनी रहती हैं और शेष में तन्तूत्कर्ष हो जाता है। यह जो विक्षतों का शरीरावयवों में विषम वितरण होता है यह फिरंग का एक विशिष्ट लक्षण है।
तन्त्वाभजारव्य के कारण शरीरांगों के प्रावर विषमतया स्थुलित हो जाते हैं उन पर यदि कोई लस्यकला आच्छादित रहती है तो वह भी प्रभावित हो जाती है तथा समीप के अन्य अङ्ग के साथ अभिलाग भी बन जाते हैं। विक्षतों के विषम-वितरण के कारण शरीरांग के धरातल पर कहीं संकोच हो जाता है, कहीं झुर्रियाँ पड़ जाती है और कहीं भाग फूला रहता है इससे धरातल की समता नष्ट हो जाती है और अंग विषमतलीय हो जाता है। कभी कभी तो अंग के बीच में एक ऐसा विदार पड़ जाता है कि उसके दो खण्ड ( lobes ) तक होते हुए देखे जाते हैं। ऐसी स्थितियों में प्रसर तन्तूत्कर्ष के साथ साथ फिरंगार्बुद भी रहते हैं तथा स्थूलित प्रावर तान्तव सूत्रों के द्वारा समीपस्थ उतियों से सम्बद्ध हो जाता है। ये सूत्र इन उतियों में बहुत गहराई तक घुसे रहते हैं। फिरंगिक जारठ्य मस्तिष्क तानिकाओं में बहुधा देखा जाता है। तानिकाएं वा मस्तिष्कछद स्थान स्थान पर स्थूलित हो जाती हैं जिसके कारण फिरंगिक स्थूल मस्तिष्कछदपाक (pachymeningitis) देखा जाता है जिसका वर्णन यथास्थान किया जावेगा। इस मस्तिष्कछदपाक के साथ साथ प्रसर फिरंगार्बुदिकीय भरमार रह सकती है और नहीं भी। जब तान्तव ऊति संकुचित होती है तो पोषणिकाग्रन्थि (पिच्यूट्री)पर पीड़न होने से बहुमूत्र (diabetes insipidus ) हो सकता है या यह पीड़न जब बाहर जाने वाली वातनाड़ियों पर पड़ता है उनसे पूर्ण भागों का घात हो सकता है। नेत्रघात इसी प्रकार इस रोग में होता है। ___ अस्थियों के पर्यावरण में जीर्णपाक होने के कारण नई अस्थि बनने लगती है। यह अस्थि पर्यस्थि या पर्यावरण के अतःस्तर से बनती है जिसके कारण हड्डी स्थूल हो जाती है तथा सूजी रहती है। नई अस्थि सघन और गुरु होती है। यह स्मरण रहना चाहिए कि यक्ष्मा में जहाँ अस्थिशोष होता है वहाँ फिरंग में अस्थिस्थौल्य मिलता है। फिर भी भावमिश्र को कहीं कहीं अस्थिशोषरूपी उपद्व मिला है।
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