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फिरङ्ग
कला बन जाती है जिसे अन्तः रक्तस्रावी स्थूल मस्तिष्कछदपाक (pachymeningitis haemorrhagica interna ) कहते हैं ।
३. मस्तिष्क का भार १५० से २०० ग्राम ( माषा ) तक घट जाता है । मस्तिष्क की यह अपुष्टि अग्रपार्श्वीय क्षेत्र ( fronto - parietal region ) में विशेष होती है।
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४. मस्तिष्क के संवेल्ल ( convolutions ) क्षीण हो जाते हैं जिसके कारण मस्तिष्क के विदर (fissures ) चौड़े और गहरे बहुत हो जाते हैं ।
५. मस्तिष्क ऊति की अपुष्टि के कारण ब्रह्मोदकुल्या ( subarachnoid space ) तथा निलयों : ventricles ) में तरल की बहुलता हो जाती है ।
६. मृदुतानिका ( चीनांशुक - piamater ) स्थूल तथा पारान्ध हो जाता है और मस्तिस्क के अग्रपिण्ड से इतना अभिलग्न हो जाता है कि जब उसे उचेलने का यत्न किया जाता है तो मस्तिष्क का भाग भी कुछ उसके साथ टूट आता है ।
७. मस्तिष्क निलयों में तरलाधिक्य के अतिरिक्त उसकी भस्तरी कला ( lining membrane ) में कणनीयता ( granularity ) आ जाती है जो पार्श्वीय निलयों में जितनी दिखती है उससे कहीं अधिक चतुर्थ निलय की भूमि पर प्रकट होती है।
अण्वीक्षदृष्टया ( microscopically ) सर्वांगघात के विक्षतों का वर्णन करना बहुत कठिन है क्योंकि वे प्रचलनासंगति नामक रोग की भाँति सरल नहीं होते । ऐसा ज्ञात होता है कि नाडीकन्दाणु के विनाश का सर्वप्रथम विक्षत इस रोग में बनता है तथा उसकी उन्नति में वाहिन्यपरिवर्तन सहायक बनते हैं । विक्षत खूब फैले हुए मिलते हैं | अतिगम्भीर विक्षत प्रमस्तिष्क बाह्यक में तथा चतुर्थ निलय की भूमि में ( उष्णीषक एवं सुषुम्ना शीर्ष में ) मिलते हैं । सुषुम्ना, धम्मिल्लक तथा मस्तिष्कमूलस्थपिण्डों ( besal ganglia ) में भी मिल सकते हैं । सुषुम्ना के विक्षत उत्तरात विहास के कारण बने हुआ करते हैं ।
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अण्वीक्ष से देखने पर निम्न सूक्ष्म विकृतियाँ मिल सकती हैं यदि प्रयत्न किया गया और नवीन खोजों का योग्यतया प्रयोग किया गया तो :
१. मस्तिष्क तानिकाओं में जीर्ण व्रणशोधात्मक कोशाओं की भरमार मिलती है । सर्वांगघात का प्रधान और वास्तविक कोशा प्ररसकोशा ( plasma cell ) होता है जो खूब मिलता है । उसके साथ लसीकोशा भी पर्याप्त रहते हैं ।
२. प्रमस्तिष्क बाह्यक ( cerebral contex ) की स्वाभाविक रचना पूर्णतः अस्तव्यस्त हो जाती है और जो विविध स्तर साधारणतया देखे जाने चाहिए वे दिखाई नहीं पड़ते । बाह्यक में विहास की प्रत्येक अवस्था ( वर्णहास, न्यष्टि की उत्केन्द्रता, न्यष्टिविलोप, सम्पूर्ण कोशा का विलोप) देखी जाती है । अग्रिम और पार्श्विक मस्तिष्क पिण्डों में कोशाओं की बहुत कमी होती है । करीराकृतिकन्दाणु ( pyramidal cells ) अधिकता से नष्ट हुए मिलते हैं ।