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विकृतिविज्ञान जिन अर्बुदों में वि-विभिन्नन अत्यधिक होता है उनमें ऊति की सी आकृति नहीं बनती उनकी रचना उससे पर्याप्त भिन्न होती है। उनकी वृद्धि बहुत द्रुतवेग से होती है ।वे शरीर में बहुत शीघ्रतापूर्वक जाते हैं । ये बहुत शीघ्र मारक भी होते हैं इस कारण इन्हें घातक, दुष्ट या चण्ड ( malignant ) अर्बुद कहा जाता है। इनका वि-विभिन्नन जितना कम होता है उतने ही वे अधिक मारक माने जाते हैं।
इस दृष्टि से वि-विभिन्नन एक प्रतीपगामी प्रगति ( retrogressive pro. gress ) है। यह उल्टा विकास है जो उच्च से नीच श्रेणी की ओर ले जाता है। इसमें ऊति की वह उच्चकोटि, वह विशिष्ट क्रियाशक्ति समाप्त प्रायः होती है। परन्तु यह नहीं कहा जा सकता है कि वि-विभिनित उति एक प्रकार की भ्रौण (embryo. nic tissue ) अति है जैसी कि गर्भकाल में देखी जाती है। क्योंकि भ्रूणावस्था में भौण ऊति एक कोशा से बहुकोशीय वृद्धि करती हुई प्रकृति के विशिष्ट नियन्त्रण से आबद्ध चलती रहती है और उसका लक्ष्य सदैव ऊँचे उठना रहता है । अर्बुदिक उति का लक्ष्य सदैव नीचे की ओर को होता है। एक उच्च क्रियाशक्ति के स्तर से अर्बुदीय कोशा एक निम्न क्रियाशक्ति के स्तर पर उतर आते हैं। वे अनियन्त्रित होते हैं और उनसे शरीर का कोई उपकार न होकर वे स्वयं शरीर पर एक भारस्वरूप देखे जाते हैं। __ रचनात्मक दृष्टि से विचार करने पर वि-विभिन्नन में कोशारसीय लक्षणों (cyto. plasmic characters ) का अभाव रहता है। अर्थात् कोशारस में जो तन्तुक (fibrils) पाये जाते हैं या कणिकाएँ (granules ) मिलती हैं वे यहाँ नहीं होती। इन लक्षणों से कोशा में प्रौढता ( adult type ) प्रदर्शित होती है। कोशारस इस दृष्टि से बहुत साधारण रहता है इससे कोशान्यष्टि कुछ बड़ी होती है और उस पर गहरा रंग चढ़ता है। अर्बुदों में कोशा विभक्त होते हुए भी देखे जाते हैं जो अन्य ऊतियों में कदापि नहीं देखा जाता है। कोशा विभजन का कार्य भी कोई बहुत अच्छे ढंग पर न होकर अव्यवस्थित स्वरूप का होता है। जिस प्रकार अर्बुद में क्रिया का स्थान कोशा वृद्धि ले लेती है उसी प्रकार वातजीवी मध्वंशन ( aerobic gly. colysis ) जो साधारणतया प्रकृत उतियों में चलता है का स्थान अवातजीवी मध्वंशन ( anaerobic glycolysis) ले लेता है।
ये जितने भी परिवर्तन अर्बुदीय कोशाओं में देखे जाते हैं वे सभी कोशा के लिए नये नहीं हैं। शरीर के कोशा गर्भाधान से लेकर जन्म तक इन सभी परिवर्तनों को पार करते हुए मिलते हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि स्थिति में कोई ऐसा आमूलचूल परिवर्तन हो जाता है जो उति के कुछ कोशाओं में भ्रौणिक समवृद्धि होने लगती है पर जो इतनी प्रौढ़ता को प्राप्त नहीं करती कि उस क्रिया को करने लगे जो प्रकृत प्रौढ़ ऊति के कोशाओं द्वारा सम्पादित होती है।
- अबुंदीय रचना अर्बुद में अर्बुदिक कोशा तथा संधार ( stroma ) ये दो रचनाएँ मिलती हैं। अर्बुदिक कोशा या तो अधिच्छदीय होते हैं अथवा संयोजी ऊतियों के किसी भी प्रकार
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