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अर्बुद प्रकरण का प्रतिनिधित्व करते हैं या दोनों प्रकारों का मिश्रण देखा जाता है। ये कोशा बहुत बड़ी संख्या में इस प्रकार भरे होते हैं कि उनके द्वारा कोई महत्व की क्रिया होने वाली है यह सोचना निरर्थक होता है। संधार रक्तवाहिनियों तथा संयोजीऊति के द्वारा बनता है। साधारण संयोजीऊतीय अर्बुदों में संधार का निर्माण अर्बुदिककोशा स्वयं कर लेते हैं। चण्ड या दुष्ट संयोजीऊतीय अर्बुदों में जितनी चण्डता ( malig. nancy ) अधिक होती है संधार उसी अनुपात में कम होता है। अधिच्छदीय अर्बुर्दो में संधार अधिच्छद में स्थित संयोजी ऊति द्वारा ही बनता है। वहाँ की संयोजीऊति में प्रगुणन की क्रिया का वेग अर्बुद निर्माणकाल में काफी बढ़ जाता है। __ संयोजीऊति की मात्रा संधार में सदैव एक सी नहीं रहा करती । कुछ दुष्टाबंदों में तान्तवऊति के सघनपुंज मिलते हैं तथा अर्बुदिक कोशा उन्हीं तान्तवऊति के तन्तुओं में इतस्ततः बिखरे पड़े रहते हैं । ऐसे अर्बुद बहुत कठिन होते हैं और उन्हें अश्मोपम अबंद कहते हैं। कहीं-कहीं जहाँ अर्बुद का विकास बहुत द्रुतगति से होता है संधार की मात्रा बहुत कम होती है और इस कारण ऐसे अर्बुद बहुत मृदुल ( soft ) देखे जाते हैं। इन अबूंदों को मस्तुलुङ्गाभ अर्बुद (encephaloid tumour ) कहते हैं। मस्तुलुंगाम का अर्थ मस्तुलुंग जैसा । मस्तुलुंग मस्तिष्क के मृदुल पदार्थ को कहते हैं।
अस्थीय अर्बुदों को छोड़ कर शेष अर्बुदों में काठिन्य या मार्दव तान्तवसंधार की मात्रा पर निर्भर करता है। यदि तान्तवसंधार ( fibrous stroma) अधिक होगा तो अर्बुद कठिन होगा ; यदि कम होगा तो वह मृदुल होगा। __तान्तवसंधार का, तथा चण्डता (दुष्टता) का कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं देखा जाता। कभी तान्तवसंधार अधिक होने पर अर्बुद की दुष्टता अधिक मिलती है तो कभी कम मिलती है । जहाँ साधारण अर्बुद संयोजीऊति के प्रगुणन का प्रोत्साहन अधिक नहीं करते वहाँ चण्डार्बुद विशेष करके कर्कटार्बुद निरन्तर संयोजीऊति को प्रक्षुब्ध करता रहता है जिससे वहाँ बहुत अधिक संयोजीऊति बनती हुई देखी जाती है। ईविंग के मत से तान्तवसंधार का कर्कटार्बुद प्रत्यक्ष उत्तेजक हुआ करता है इसी कारण समीपस्थ तान्तवऊति का अतिघटन जिसके साथ हुदगोल कोशाओं की भरमार भी रहती है बहुधा देखा जाता है।
अर्बुदों में रक्तवाहिनियाँ और लसवाहिनियाँ पाई जाती हैं। वातनाडीतन्तु तथा वातनाडीअग्र भी उनमें देखे गये हैं परन्तु इन सबका क्या कार्य है यह अभी तक अज्ञात रहा है। रक्त की वाहिनियाँ जो उन अर्बुदों में मिलती हैं वे प्रायः पूर्वज (primi. tive ) प्रकार की होती हैं। वे कोटराभ या स्रोतसाभ (sinusoids ) से मिलतीजुलती होती हैं जिनकी प्राचीरों को अन्तश्छदीय कोशा पूरी तरह आस्तरित नहीं किए रहते और कहीं-कहीं तो उनका आस्तर आर्बुदिक कोशाओं द्वारा बनता है। वे पर्याप्त प्रवृद्ध हो जाती हैं और उनमें अन्तः वाहिनीय धनानोत्कर्ष हो सकता है।
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