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दशम अध्याय अन्य विशिष्ट कणावुदिकीय व्याधियाँ ( Other Specific Granulomatous Diseases ) इस अध्याय में अब हम कुष्ठ ( leprory ), तथा कवक रोग ( fungus diseases ) की वैकारिकी का वर्णन उपस्थित करेंगे।
कणनीयार्बुद औपसर्गिक कणार्बुद ( infectious granulomas ) या विशिष्ट कणनीयार्बुद ( specific granuloma ) एक विशिष्ट रोगसमूह का नाम है। इसमें यच्मा
और फिरंग दोनों सम्मिलित हैं तथा इनके अतिरिक्त कुष्ठ और कवक रोग (myco. ces ) भी आते हैं। आरम्भ में इस नामकरण का अर्थ इतना ही था कि विक्षत कणनीय ऊति (granulation tissue) का एक पुंज मात्र है पर आज इसे उन औपसर्गिक अवस्थाओं के लिए भी पुकारा जाता है जिनमें प्रोतिकोशा ( histioCytes) प्रमुख कोशा होते हैं यद्यपि लसीकोशा और प्ररसकोशा भी महत्वपूर्ण भाग लेते हैं । ये प्रोतिकोशा कभी कभी फूल जाते हैं और उनमें विमेदाभ पदार्थ भी पाया जाता है इन्हें अधिच्छदाभकोशा कहते हैं। जिन्हें हमने यक्ष्मा के प्रकरण में कुछ अधिक स्पष्टता के साथ लिखा है। ये अधिच्छदाभ कोशा कई कई एक में मिल जाते हैं और महाकोशाओं को जन्म देते हैं जो न केवल जीर्ण कणनीयार्बुद को ही बतलाते हैं अपि तु बाह्यपदार्थ के प्रति होने वाली शरीर की व्रणशोथात्मक प्रतिक्रिया की ओर भी इङ्गित करते हैं। इन कोशाओं की संचिति एक स्थान पर इतनी हो सकती है कि विक्षत एक अर्बुद के समान फूला हुआ देखा जाता है इसी लिए इसे उत्पादी व्रणशोथ ( productive inflammation ) या कणनीयार्बुद या कणनीयाधुदिका कह सकते हैं। इन सब कणनीयार्बुदों में विक्षतों में अन्त में कणन उति बनती है और तन्तूत्कर्ष हुआ करता है। अब हम सर्वप्रथम कुष्ठ का वर्णन करते हैं ।
महाकुष्ठ
(Leprosy ) जैसा कि हमने यक्ष्मा के सम्बन्ध में किया है हम यहाँ कुष्ठ का प्राचीन आचार्यों द्वारा निगदित विचार अधिक प्रस्तुत नहीं करेंगे क्योंकि उसे हम आगे अध्याय में बहुत अधिक विस्तार के साथ पाठकों के समक्ष उपस्थित करने वाले हैं। कुष्ठ से आज जो ग्रहण किया जाता है उसी को ही हम यहाँ उद्धृत करेंगे।
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