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विकृतिविज्ञान गलशोफ होता है उन्हीं से सकोथ मुखपाक ( cancrum oris) होता है। तुण्डिकाओं पर विक्षत बनते हैं जो प्रारम्भ में विनाशक होते हैं तथा निर्मोक हटा देने पर तुण्डिकाओं में गुहा बनी हुई मिलती हैं।
न्युपदंश या परंग यह एक उष्ण कटिबन्ध प्रदेशीय रोग है जो कृष्ण वर्ण के व्यक्तियों में पाया जाता है । इसके कर्ता जीवाणु को न्युपदंश सुकुन्तलाणु (Treponema pertennis ) कहते हैं यह फिरंग के सुकुन्तलाणु से मिलता जुलता होता है। इसके द्वारा होने वाले परंग या न्युपदंश के विक्षत सब त्वचा में होते हैं । प्राथमिक विक्षत त्वचा में होते हैं फिर द्वितीयक लक्षण ज्वर तथा सर्वत्वचा के उद्भेदन (generalised cutaneous infection ) के रूप में प्रकट होते हैं । इस रोग की तृतीयावस्था होती है पर चतुर्थावस्था नहीं होती। परंग का उपसर्ग फिरंग के लिए क्षमता प्रदान नहीं करता। परंग माता-पिता से पुत्र-पुत्री को नहीं जाता। वासरमैन प्रतिक्रिया यहाँ भी अस्त्यात्मक होती है।
वीलरोग या जानपदिक सुकुन्तलाण्विक कामला ( Wcil's disease or epidemic spirochaetal gaundia ) इस रोग का प्रारम्भ आकस्मिक होता है। एकदम वमन, शिरःशूल, कटि और सक्थि-सक्थिनयों में शूल के साथ ज्वर हो जाता है साथ में कामला तथा नीलोहांकीय रक्तस्त्राव (petechial haemorrhages ) रहते हैं । श्लेष्मल त्वचाओं से इतना रक्तस्राव होता है कि रक्तवमन, रक्तमेह या रक्तातिसार इनमें से कुछ भी देखा जा सकता है। रक्त में बहन्यष्टिसितकोशोत्कर्ष मिलता है तथा यकृत् तथा वृक्कों में विक्षत बनते हैं। यकृत् में कोशाओं का प्रसर विनाश मिलता है । इसके कारण यकृत् के बड़े बड़े क्षेत्रों में अति मृत्यु हो जाती है। वृक्कों में केशजूटों में रक्तस्राव मिलता है तथा परिवलित नालिकाओं में भी अतिमृत्यु पाई जाती है। इस रोग के साथ साथ ओष्ठसपी ( herpes labialis) भी सामान्यतया मिलती है। इस रोग के जीवाणु को ज्वरिकामला अतिकुन्तलाणु ( leptospira ioterohaemorrhagica) कहते हैं । यह रोगी के रक्त में, आन्त्रप्राचीर में, अधिवृक्कग्रन्थियों में, वृक्कों में तथा मूत्र में पाया जाता है। रोग होने के बाद एक सप्ताह तक जीवाणु रक्त में मिलता है फिर बाद में मूत्र में मिलता है। यदि इस रोग के कारण प्राणी मर जावे तो उसके शरीर में वे खूब मिलते हैं। यह रोग मूषकों में खूब पाया जाता है जब वे गर्मतर स्थानों में रहते हैं। उपसृष्ट जल द्वारा स्वचा के विदारों या श्लेष्मलकला द्वारा यह रोग मनुष्य को लगता है। यह जापान, अमेरिका, इंगलैण्ड भारतवर्ष सर्वत्र पाया जाता है।
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