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अन्य विशिष्ट कणार्बुदिकीय व्याधियाँ
कुष्ठ की औतिकी कुष्ठ की वैकारिकी का उतना ज्ञान अभी तक नहीं किया जा सका है जितना कि यक्ष्मा या फिरंग का हो चुका है। ऐसा ज्ञात होता है कि कुष्ठ का जीवाणु सर्वप्रथम मुखमण्डल या नासा की लसवहाओं में विकसित होता है या वह त्वचा के द्वारा प्रवेश पाता है। इस जीवाणु का वितरण रक्तधारा द्वारा होता है। यही कारण है कि इस रोग के विक्षत संमितीय (symmetrical ) होते हैं, वे सम्पूर्ण शरीर में पाये जाते हैं और जब वे उत्पन्न होते हैं या जब रोग का दौरा होता है तो साथ में तीव्र ज्वर आता है।
प्रत्यक्ष देखने से जो नवीन ऊति बनती है वह आधूसर या आपीत वर्ण की और अर्द्धपारदर्श होती है। वह समरस ( homogeneous) भी होती है। अन्तरालित ऊति पर अधिक प्रभाव पड़ता है तथा लसाभ ऊति पर उससे कम ।
अण्वीक्षण करने पर ग्रन्थिकाओं में कगनऊति पाई जाती है जिनमें बहुत से कुष्ठदण्डाणु भरे रहते हैं। नवीन अति में अनेक, बृहदाकार, कणीय रसधानीयुक्त ( vacuolated ) कोशा के समान जो पुंज ( masses ) होते हैं उन्हें कुष्ठकोशा ( lepra cells ) कहते हैं। रसधानियों में असंख्य कुष्ठदण्डाणु भरे रहते हैं। ये कुष्ठकोशा लसावकाशों ( Jymph spaces ) में खूब पाये जाते हैं ये दण्डाणु इस प्रकार इन कोशाओं में भरे होते हैं जैसे डिब्बे में सिगरेट भरी रहती हैं। . ___ कुष्टकोशा क्या हैं इसके सम्बन्ध में नव्य मत यह है कि वे लस्य घनास्त्र (lymphatic thrombus ) हैं। इसको दूसरे शब्दों में यों भी कह सकते हैं कि एक लसवहा का ऐसा अनुप्रस्थछेद (transverse section ) जिसका निहित लस ( contained lymph) अपने अनेक कुष्ठदण्डाणुओं के साथ जम गया हो वही कालान्तर में कुष्ठकोशा कहलाता है। प्राचीन मत यह है कि कुष्ठ कोशा अन्तश्छदीयकोशा हैं जो लसावकाशों के अन्तश्छद से निकले हैं। इन कुष्ठकोशाओं में अन्तर्निहित रसधानियों के सम्बन्ध में यह मत है कि कोशाओं में निहित कुष्ठजीवाणुओं के उत्पादस्वरूप उनका जन्म हुआ है।
इन लसीय घनास्रों के कारण प्रक्षोभ उत्पन्न होता है जो आस्तरीय अन्तश्छद का प्रगुणन करता है जिससे कि महाकोशा बनते हैं। ये महाकोशा कुष्ठदण्डाणु विरहित बनते हैं।
लसीकाग्रन्थियों में छोटे छोटे तान्तव सिध्म बनते हैं। यकृत् और प्लीहा इन दोनों में जीर्ण अन्तरालित ऊतीय व्रणशोथ देखा जाता है (डैलीपाइन)। ऐसा कहा जाता है कि फुफ्फुसों में यचमा रहता है । उनकी आकृति ऐसी अवश्य हो जाती है जो यह प्रकट करती है कि किलाटीय श्वसनकीय श्वसन वहाँ हो गया हो। परन्तु यह कहना कि यह दशा भी कुष्ठ के जीवाणु के कारण हुई है सन्देहास्पद कहा जाता है। क्योंकि कुष्ठियों में यक्ष्मा भी बहुधा देखी जाती है ।
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