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विकृतिविज्ञान
अनेक न्यष्टियाँ होती हैं और वे बहुत बड़े बड़े होते हैं। उनका प्ररस कणीय और अम्लप्रिय ( acidophilic ) होता है । वहाँ पर तन्तुरुह बनने लगते हैं जो शीघ्र प्रगुणित होकर एक तान्तव पुंज बना देते हैं और उस क्षेत्र को जहाँ व्रणशोथात्मकप्रक्रिया चलती है पूर्णतः प्रावरित ( encapsulated) कर लेते हैं ।
इस प्रकार एक कणार्बुद बन जाता है। ऐसा कणार्बुद पैराफीन, वैसलीन, तैल, शल्य के पदार्थ, अश्मरियाँ आदि में से किस से भी बन सकता जो शरीर की ऊतियों को अधिक प्रक्षुब्ध नहीं करतीं ।
नाबा
( Rhinosporiodiosis )
यह भारत में बहुत अधिक प्रचलित रोग है । यह अमनासारन्ध्रों का एक प्रकार का स्थानिक व्रणशोथ है । यह पुरुषों में होता है । स्त्रियाँ बहुत कम प्रभावित होती हैं।
इस रोग का विज्ञत एक बहुपादीवृद्धि ( polypoid growth ) होती है । जो नासा में होती है । इसमें कणन ऊति रहती है । इसका अण्वीत चित्र विशिष्ट होता है । वृद्धि में अनेक कोष्ठिकाएँ ( cysts ) होती हैं तथा प्रत्येक कोष्ठी में एक एक रोगकारी जीवाणु रहता है। इस जीवाणु को सी. बी. डी. का नासाबीजाणु या सामान्य नासबीजाणु ( rhinosporidium seeberi ) कहते हैं यह एक प्रकार का कवक है । यह जीवाणु ८ अणुम ( micron ) का होता है। धीरे धीरे अपनी म्यष्टि का विभाजन करके यह २००-३०० अणुम का हो जाता है जिसमें ४००० न्यष्टियाँ होती हैं जो १६००० बीजाणु बना देती हैं। प्रगल्भ जीवाणु को
धान (sporangium ) कहते हैं । यह दुहरी बहीरेखा ( out line ) के लिफाफे से ढँकी रहती है। इसमें एक रन्ध्र होता है जिससे बीजाणु बराबर निकला करते हैं। इसका उपसर्ग कैसे फैलता है नहीं कहा जा सकता ।
कालस्फोट ( Anthrax )
यह पशुओं द्वारा मनुष्यों को प्राप्त होने वाला ही एक रोग है । हमने इस प्रकरण में कितने ही ऐसे रोगों का वर्णन किया है जो पशुओं द्वारा प्राप्त होते हैं । उसी दृष्टि से कालस्फोट या प्लीहज्वर का भी वर्णन यहाँ दिया जा रहा है ।
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कालस्फोट नामक रोग श्वेतद्वीपीय पशुओं में बहुधा पाया जाता है । भेड़ उससे पर्याप्त प्रभावित रहती है । यह रोग मनुष्यों को स्वचा से लगता है । पशुओं को रोग मुख या श्वसन द्वारा प्राप्त होता है। यही कारण है कि जब इस रोग का स्वरूप मानवसमाज में त्वचा में मिलता है जो पशुजगत् में फुफ्फुस या आंत्र में देखा जाता है । उपसर्ग रुग्ण पशुओं की ऊन या खालों के छूने से लगता है इसी कारण कसाई, चमड़े रंगने वाले चमार, ऊन इकट्ठे करने करने वाले गड़रिये इस रोग के खास कर
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