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विकृतिविज्ञान उपरोक्त नाश या विहास क्यों होता है यह कहना कठिन है क्योंकि फिरंगार्बुदों का अभाव रहता है। जैसे पश्चकार्य में सुकुन्तलाणुओं के सदृश पश्चनाडीमूलों का सफाया होता है वैसे ही इन नाडीकन्दाणुओं की तबाही सुकुन्तलाणु ही बुलाते हुए प्रतीत होते हैं।
३. वातनाडी सूत्रों पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है।
४. प्रभावित क्षेत्र अत्यधिक वाहिनीय ( vascular ) देखे जाते हैं। मस्तिष्क की छोटी या बड़ी सभी वाहिनियों में यही नहीं केशालों तक में भी प्ररसकोशाओं के के बाहुप या मणिबन्ध उनके बाह्य चोलों में अथवा परिवाहिन्य अवकाशों में डटकर देखे जाते हैं। ये वाहिनीय विक्षत बाह्यक की सम्पूर्ण गहराई में मिलते हैं जब कि फिरंगिक मस्तिष्कछदपाक में वे तानिकाओं के नीचे बाह्यक के उपरिष्ठ स्तर में ही मिलते हैं। ____५. कई दण्डाकारी कोशाओं ( rod shaped cells ) की प्रसर भरमार देखी जाती है। ये कोशा नाडीश्लेष से उत्पन्न होते हैं।
६. नाडीश्लेषीय प्रगुणन कुछ खास क्षेत्रों में (मृदुतानिका के नीचे बाह्यक के उपरिष्ठ स्तर में निलय प्राचीरों में ) खूब देखा जाता है। इसी के कारण मृदुतानिका में बाह्यक से बुरुश जैसे प्रवर्धन चले जाकर उसे अभिलग्न कर लेते हैं जिससे वह चिपक जाती है और उसका उचेलना कठिन हो जाता है इसे हम पहले लिख चुके हैं। पहले हमने यह भी लिख दिया है कि चतुर्थ निलय तथा अन्य निलयों की भूमि पर कणनीयता देखी जाती है। यह कणनीयता इसी वातश्लेष के प्रगुणन का स्थूल दर्शन है । कणों के इन उभारों में से किसी किसी पर निलय स्तर (ependyma ) गायब हो जाता है । न केवल नाडीश्लेष कोशा ही मिलते हैं नाडीश्लेष तन्तु भी खूब देखे जाते हैं। ये कोशा ताराकोशा ( astrocytes ) होते हैं उनमें से एक प्ररसात्मक प्रवर्धन निकलता है जो एक चूषणकपाद के द्वारा किसी वाहिनी से सम्बद्ध होता है। दण्डाकारी कोशा सूक्ष्म श्लेष से निकलते हैं। ये दण्डाकारी कोशा होगा कोशाओं और संयुक्त कणीयकोशा ( compound granular capuscle ) के मध्य की अवस्था है।
होगा कोशाओं में शोणायसि ( hemosiderin ) की मात्रा बहुत अधिक होती है । सब रुग्णों में प्रमस्तिष्कीय वाहिनियों के चारों ओर अयस् पर्याप्त मात्रा में संचित हो जाता है। राजिल पिण्ड ( corpus striatum) में विहास तथा श्लेषोत्कर्ष (gliosis ) मिलता है। इन्हीं के कारण प्रकम्प ( tremors) आते हैं और स्वरविकृति देखी जाती है। शुक्तिपीठ (putamen ) इस रोग में सदैव प्रभावग्रस्त होता है तथा शुक्तिगर्भ (globus pallidus ) कभी कभी प्रभावित होता है।
७. सुषुम्ना के पार्श्वस्तम्भों में मुकुलतन्त्रिका (pyramidal tract ) के
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