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विकृतिविज्ञान अब हम वातफिरंग के दूसरे महत्व के रोग उन्मत्तस्य सर्वाङ्गघात का वर्णन करते हैं।
उन्मत्तस्य सर्वाङ्गघात या सर्वाङ्गवात (General Paralysis of the Insane or General Paresis )
इसका एक नाम ( dementia paralytica ) भी है । यह एक फिरंगजनित व्याधि है । इस रोग में मूर तथा नौगूची ने सुकुन्तलाणुओं की उपस्थिति मस्तिष्कोद तथा प्रमस्तिष्क में सिद्ध की है । पर केवल फिरंगिक उपसर्ग मात्र कहने से ही रोग का वर्णन पूरा नहीं हो जाता। क्योंकि जहाँ फिरंग एक सामान्य रोग है वहाँ उन्मत्तस्य सर्वाङ्गघात या सर्वांगवात एक विरल ( rare ) व्याधि है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि इस रोग में फिरंग के अतिरिक्त अन्य कारक भी महत्त्वपूर्ण हैं। पर वे क्या हैं उन्हें कहना कठिन हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति मानसिक चिन्ताओं से युक्त होता है अशान्त, व्यग्र, दुराचारपूर्ण जीवन व्यतीत करता है वही सर्वांगवात से पीडित होता है। अफ्रीका के सीधे साधे नीग्रो लोगों में जहाँ फिरंग पर्याप्त है परन्तु वहाँ उन्मत्तस्य सर्वांगघात का नाम निशान तक नहीं है जो यह प्रकट करता है कि आधुनिक सभ्यता का भी इस रोग की उत्पत्ति में अवश्य हाथ रहा होगा। भावमिश्र के समय भारत में यह सभ्यता न होने के कारण उसने जो फिरंग का वर्णन किया है उसमें न पश्चकार्य ही आया है और न यह फिरंगिक सर्वांगघात । क्राफ्ट ऐबित ने सर्वांगघात के निदान का सारांश 'सिविलाइजेशन एण्ड सिफिलाइजेशन (सभ्यता यत्र वर्तते तत्र फिरङ्गोऽपि जायते) ऐसा दिया है। ___ यह रोग प्रारम्भिक उपसर्ग के १०-१५ वर्ष पश्चात् ही प्रकट होता है। यह प्रचलनासंगति (पश्चकार्य ) के समान ही होता है और उससे कुछ कुछ मिलता जुलता होता है। सहजफिरंग से पीडित बालक को दश वर्ष की अवस्था में इस रोग का एक बालरूप (juvenile form ) भी देखने में आता है। पहले यह रोग पुरुषों में स्त्रियों की अपेक्षा अधिक देखा जाता था पर अब यह रोग स्त्रियों में भी बढ़ रहा है। पहले जहाँ दस पुरुषों में यह रोग होता था तो एक स्त्री भी इससे पीडित मिल जाती थी परन्तु आज तीन पुरुषों के पीछे एक स्त्री इस रोग से पीडिता देखने को मिलती है। प्रचलनासंगति की तरह सर्वांगघात के विक्षत भी साधारण फिरंगिक विक्षतों से बहुत भिन्न होते हैं । यद्यपि प्रारम्भ में रोग के कारण अनेकों व्यक्ति २-३ वर्षों में मर जाते थे पर आधुनिक फिरंगनाशक अचूक चिकित्सा के कारण साध्यासाध्यता में बहुत अन्तर आ गया है और अब यह रोग असाध्य नहीं माना जाता है।
विकृत शारीर की दृष्टि से सर्वांगघात में निम्न स्थूल विकृतियाँ देखी जाती हैं :१. करोटि टोपी ( skull - cap ) स्थूलित हो जाती है। २. दृढ़तानिका (duramater) के नीचे रक्तस्राव होने के कारण एक काली मोटी
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