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विकृतिविज्ञान
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करता है स्वाभाविक
महाधमनी की फिरंगिक सिराजग्रन्थियाँ २ प्रकार की हुआ करती हैं :१—स्यूनाकार ( saccular ) २ - तर्कुरूप ( fusiform ) स्यूनाकार सिराजग्रन्थियों का निर्माण महाधमनीक प्राचीरों के फैलने से तब होता है जब उसके मध्यमचोल में स्थित स्थानिक कोई तान्तव या फिरंगार्बुदीय विक्षत ही स्वयं फैल जावे यह फिरंगिक मध्यमहाधमनीपाक ( mesaortitis ) के परिणामस्वरूप होता है । प्राचीरों के फैलते समय हृच्छ्रलाभ वेदना हुआ करती है । मध्यमचोल का वह स्थान जो धीरे-धीरे फैलने का यत्न शारीर रचनाओं से वञ्चित हो जाता है अर्थात् उस स्थान पर साधारणतः पाये जाने वाले स्तर नहीं रह जाते । जो स्यून बनने लगता है उसकी ग्रीवा पर ही मध्यचोलीय प्रत्यास्थ ऊति के तन्तु समाप्त हो जाते हैं वहीं पर अन्तश्छद भी खतम हो जाता है । इसलिए सिराज ग्रन्थि की प्राचीर का निर्माण एक नवीन संयोजी ऊति द्वारा होता है जो बाह्यचोल के प्रगुणन से बनती है । यदि ग्रन्थि का निर्माण इतने अधिक वेग से होता है कि इस नवीन ऊति का उतने शीघ्र बनना संभव न हो सके तो वह फट जाती है ।
महाधमनी प्राचीर में
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यतः इस स्यूनाकार सिराजग्रन्थि में अन्तश्छद नहीं होता और केवल आम तान्तव ऊति ही होती है इसके अन्दर पहुँचा हुआ रक्त आतंचित हो जाता है । इसी कारण इन स्यूनों को खोलने पर उनमें स्तरीयित रक्तातंच ( laminated blood clot) प्रायशः देखने में आता है | रक्तातंच का एक कारण अन्तश्छदाभाव है तथा दूसरा कारण रक्त का वहाँ स्थिर होना भी है । यह रक्तातंच प्रायः तान्तव ऊति में अन्य अन्तर्वाहिनीय घनात्रोत्कर्ष की तरह बदलता नहीं है अपि यह तो एक दृढ, मसृण आतंचवत् बना रह कर थोड़ा या बहुत महाधमनीप्राचीर के दुर्बल विन्दु को दृढ करने का यत मात्र करता है। यह आतंच टूट कर अन्तःशल्यों को उत्पन्न नहीं करता है ।
इस प्रकार की स्थूनाकार सिराजग्रन्थियाँ महाधमनी के तोरण के अनुप्रस्थ और अवरोह भागों में एक नहीं अनेक भी देखी जा सकती हैं। चित्र देखने से ज्ञात होगा कि महाधमनी तोरण में सिराजग्रन्थि होने के कारण ३ से ६ पश्च कशेरुकाओं में अस्थियों में अपरदन ( erosion ) बन गये हैं परन्तु वहाँ भी प्रत्यास्थिक अन्तर्कशेरु • की बिम्ब ( elastic intervertebral dises ) ज्यों की त्यों होने से कुछ आगे की ओर निकली हुई दिखलाई देती हैं । अनुप्रस्थ तोरण की सिराजग्रन्थियों के कारण उरः फलक का अपरदन इसी प्रकार देखा जा सकता है । जहाँ-जहाँ अस्थियों में सिराज ग्रन्थि द्वारा अपरदन होता है वहाँ पर्याप्त वेदना हुआ करती है । निपीडजन्य अन्य प्रभावों में कण्ठनाडी पर दबाव पड़ने के कारण दुश्वसन या श्वासावरोध ( dyspn - oea ) हो सकता है, प्रत्यावर्ति स्वरयन्त्रगा नाडी ( recurrent laryngeal nerve ) पर दबाव पड़ने से स्वरभंग हो सकता है तथा अन्नप्रणाली पर दबाव का परिणाम दुर्निगलन ( dysphagia ) में हो जा सकता है । औदरिक महाधमनी में फिरंगिक सिराजग्रन्थियाँ बहुधा नहीं देखी जातीं ।
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