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फिरङ्ग है। पर जब वह मस्तिष्क के भीतर तक देखा जाता है तो वह मृदु-जालतानिकाओं के बाहुप ( sleeve of pia-arachnoid ) पर जहाँ साथ साथ वाहिनियाँ भी रहती हैं बनता है । इसका आकार मटर से लेकर नारंगी के बराबर तक हो सकता है यह गाढता की दृष्टि से दृढ़ तथा वर्ण में धूसर होता है ।
अण्वीक्षण पर इसमें फिरंगिक कणनऊति भरी होती है जो वाहिनियों से समृद्ध होती है। इसमें प्ररस कोशा, लसीकोशा तथा अधिच्छदाभ कोशा पाये जाते हैं। केन्द्र में अतिनाश हुआ रहता है तथा किलाटीयन भी हो जाता है। फिरंगार्बुद के नीचे बसी मस्तिष्क ऊति अपुष्ट हो जाती है तथा वातश्लेष ( neuroglia) का प्रगुणन होने लगता है।
जब फिरंगार्बुद का आकार बढ़ जाता है तब वह अन्तःकरोटीय निपीड ( intracranial pressure ) के कुछ चिह्न प्रकट करता है। इसलिये मस्तिष्कार्बुदों का निदान करते समय सबसे पहले फिरंगावुद को पृथक कर लेना आवश्यक होता है। यही बात सुषुम्नास्थ अर्बुदों के लिए भी जानें ।
परिधमनीपाक के कारण मस्तिष्क में अनेक सूक्ष्म फिरंगार्बुदिकाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। बहुत ही कम बड़े फिरंगार्बुद बनते हैं। मृदु-जालतानिकीय बाहुपों में वे कभी कभी बनते हैं और धीरे धीरे समीपस्थ मस्तिष्क अति का विनाश करते हैं वे अन्य फिरंगार्बुदों की तरह पहले वाहिनीमय, धूसर तथा पारभासक होते हैं बाद में उनमें किलाटीयन होता है उनका केन्द्र मृदु बन जाता है ऊपर एक सघन तान्तव प्रावर चढ़ जाता है। करोटि में निपीड वृद्धि के कारण शिरःशूल, वमन, अक्षिनाडीपाकादि के लक्षण मिल सकते हैं।
फिरंगिक तानिकीय मस्तिष्क पाक-सुलेमान का कथन है कि फिरंग का तानिकीय उपसर्ग बहुत करके मिलता है और वह सम्भवतया २०-३० प्रतिशत फिरंग पीडितों में मिल सकता है। परन्तु शवपरीक्षागृह में तानिकाफिरंग के रोगी बहुत कम पाये जाते हैं। फिरंग के कारण दृढ़तानिका, मृदु तानिका तथा जालतानिका तीनों प्रभावित हुआ करते हैं. पर मृदु-जाल तानिकाओं पर जो प्रभाव पड़ता है वह दृढतानिका पर नहीं देखा जाता है। मस्तिष्क के आधार पर विशेष करके अन्तर्मस्तिष्कमृणालकीय अवकाश ( inter peduncular space ) तथा दृष्टिनाडीयोजनिक ( optic chiasma ) के क्षेत्रों में विक्षत पाये जाते हैं जिसके कारण तृतीया नाडी पर प्रभाव पड़ना सम्भव हो जाता है। कुछ रुग्णों में तानिकाओं में फिरंगावुदिकीय भरमार बहुत मिलती है विशेष करके मस्तिष्क शिखर (vertex) पर । इस रोग में जैसा कि नाम से स्पष्ट है कम या अधिक अंश में मस्तिष्क पदार्थ भी प्रभावित होता है।
प्रत्यक्ष रूप में अन्तर्मस्तिष्क मृगालकीय अवकाश में श्लिषीय उत्स्यन्द (gelati. nous exudate ) सा देखा जाता है या वहाँ बहुत हलका बेमालूम दूधियापन
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