________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
फिरङ्ग
६२५
में स्थिति के अनुसार होते हैं । मस्तिष्कच्छदपाक के कारण मस्तिष्काधारीय लक्षण मिलते हैं । फिरंगार्बुदीय स्थूलता तृतीय, चतुर्थ और षष्ठ नाडियों को, जिस समय वे मस्तिका से निकलती हैं, उसी समय पकड़ लेती हैं। इसके कारण रोगी वर्मपात ( ptosis ), टेरता (strabisinus ) तथा द्विधा दृष्टि ( diplopia ) पीडित हो जाता है । ये लक्षण स्थायी नहीं होते । द्वितीया नाडी के प्रभावित होने से अक्षिनाडीपाक ( optic neuritis ) हो सकता है देखने की क्रिया में विकृति आ सकती है । अन्य शीर्षण्या नाडियाँ भी सकती हैं पर वैसा बहुत ही कम देखा जाता है ।
I
और नेत्र के प्रभावित हो
कभी कभी लक्षण तीव्र और चंचल ( fulminating ) होते हैं । इसका उदाहरण देते हुए वह लिखता है कि एक रोगिणी सर्वाङ्गीण | आक्षेपों से युक्त आई और वह ४८ घण्टे में ही मर गई । परीक्षण पर ज्ञात हुआ कि वह फिरंगपीडिता थी । शवपरीक्षा से ज्ञात यह हुआ कि वह तानिकीय मस्तिष्क पाक से प्रभावित थी और उसके मस्तिष्क बाह्यक में घातक विक्षत पाये गये ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वात फिरंग की प्रारम्भिकावस्था में कभी कभी घातक मस्तिष्कच्छदपाक के लक्षण देखे जाया करते हैं । मध्यमा प्रमस्तिष्कीय धमनी की शाखाओं में घनास्त्रोत्कर्ष हो जाने से और रक्तपूर्ति में बाधा आने से पक्षाघात (hemiplegia ) भी हो सकता है । क्योंकि इससे मस्तिष्क का भाग मृदुल हो जाता है। इस प्रकार वातफिरंग बहुजरठोत्कर्ष से लेकर प्रमस्तिष्कीय रक्तस्त्राव तक किसी भी रोग की कारिणी हो सकती है ऐसा विद्वानों का मत है ।
७००
मस्तिष्कोद इस रोग में विभिन्न प्रकार का देखा जाता है । तीव्र फिरंगिक मस्तिष्कच्छदपाक होने पर प्रतिक्रिया गम्भीर होती है जिसके कारण ४००–६००तक लसीकोशोत्कर्ष देखा जाता है । इतनी अधिक कोशागणना फिरंगिक मस्तिष्कच्छदपाक में या अजीवाणुक लसीकोशीय मस्तिष्क छुदपाक में ही देखी जाती है । मस्तिष्कोद की प्रोभूजिन की मात्रा भी पर्याप्त बढ़ जाती है । वासरमैन प्रतिक्रिया पूर्णतः अस्त्यात्मक होती है । श्लेपाभ स्वर्ण वक्ररेखा ( colloidal gold curve ) अंगघातिक ( paretic ) प्रकार की होती है । यदि विक्षत फिरंगार्बुद हुआ तो मस्तिष्कोद में बहुत कम परिवर्तन मिलते हैं वासरमैन तथा स्वर्णपरीक्षण दुर्बल अथवा नात्यात्मक होते हैं । न अधिक लसीकोशोत्कर्ष होता है और न प्रोभूजिन की मात्रा ही बढ़ती है । यदि विज्ञत पूर्णतः वाहिनीय हुए तो मस्तिष्कोद पूर्णतः अपने स्वाभाविक स्वरूप में ही देखा जाता है ।
I
पचका या प्रचलनासंगति
पचकार्श्य ( tabes dorsalis ) या प्रचलनासंगति ( locomotor ataxia ) फिरंग की अन्तिम अवस्थाओं की प्रव्यंजना है । फिरंग के उपसर्ग के १०-१५ वर्षो के पश्चात् यह रोग हुआ करता है। एक बार फिरंग लग जाने के कम से कम २ वर्ष पश्चात् और अधिक से अधिक २० वर्ष पश्चात् तक यह रोग लग सकता है । यह तो
५३, ५४ वि०
For Private and Personal Use Only