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विकृतिविज्ञान रोगग्रस्त करता है उतना अन्य परिवारों को नहीं करता। दूसरे वातनाडीसंस्थान पर कार्य करने वाला सुकुन्तलाणु एक विशिष्ट प्रकार का होता है क्योंकि जिस एक साधन द्वारा किसी को वातनाडीसंस्थानगत फिरंग होता है उसी साधन द्वारा उपसृष्ट कइयों के वातनाडीसंस्थान में फिरंग होता हुआ देखा जाता है। ये दोनों बातें कहाँ तक युक्तियुक्त हैं अभी निश्चयात्मक रीति से नहीं कहा जा सकता क्योंकि इस विषय पर अधिक गवेषणा की आवश्यकता है। ___वातनाडीसंस्थान में फिरंगोपसर्ग या फिरंग विष दो प्रकार का प्रभाव डालता है जिनमें प्रथम प्रभाव इस संस्थान की संयोजी ऊतियों और रक्तवाहिनियों पर पड़ता है। इसके कारण जो रोग उत्पन्न होता है उसे वातफिरंग ( neurosyphilis) या तानिकावाहिनीय फिरंग ( meningovascular syphilis ) कहते हैं तथा द्वितीय प्रभाव इस संस्थान की जीवितक ऊति पर पड़ता है जिसके कारण पश्चकाय ( tabes dorsalis) जिसे प्रचलनासंगति ( locomotor ataxia) भी कहते हैं तथा उन्मत्तस्य सर्वाङ्गघात (general paralysis of the insane) या सर्वाङ्ग घात (general paresis ) होता हुआ देखा जाता है। हम इन्हीं का वर्णन नीचे यथाक्रम दे रहे हैं।
वातफिरंग ___ इस मस्तिष्कसुषुम्नाफिरंग (cerebro spinal syphilis ) भी कहते हैं । पर चाहे वातफिरंग कहें या मस्तिष्कसुषुम्नाफिरंग ये दोनों नाम ही व्यर्थ हैं क्योंकि वे रोग को पश्चकार्य तथा सर्वाङ्गघात से पृथक बतलाने में असमर्थ हैं । मौट ने जो अन्तरालित अस्थिफिरंग तथा जीवितक ऊतियफिरंग नाम दिये हैं वे कुछ सार्थक हैं परन्तु इनका प्रयोग बहुत ही कम किया गया है। वातफिरंग का कारण होता है वातनाडीसंस्थान की अन्तरालित ऊति में फिरंग का उपसर्ग लग जाना जिसका भाव है तानिकाओं, उनके परिवाहिन्य वर्द्धनकों (perivascular prolongations ) तथा रक्तवाहिनियों की प्राचीरों में फिरंग का उपसर्ग लग जाना । यहाँ जो विकृति देखी जाती है वह उसी प्रकार की होती है जिससे हम पर्याप्त परिचित हैं। अर्थात् कणन ऊति की उत्पत्ति, ऊतिनाश, फिरंगार्बुदिकानिर्माण तथा विशिष्ट प्रकार का धमनीपाक ही वे विकृतियाँ हैं जो वातफिरंग में मिलती हैं। ये विकृतियाँ स्थानिक भी हो सकती हैं और प्रसर भी। स्थानिक होने पर फिरंगार्बुद बनते हैं और प्रसर होने पर तानिकामस्तिष्कपाक ( meningo-encephalitis ) अथवा तानिकीय सुषुम्नापाक ( meningo myelitis ) होता है। इन्हीं का वर्णन अब किया जावेगा।
फिरंगार्बुद-मस्तिष्क या सुषुम्ना में आजकाल फिरंगार्बुद होता हो वह न तो मृत्यूत्तर परीक्षण गृह से सिद्ध होता है न निदान से । यह तो तानिकाओं पर एक प्रकार के प्रभाव के फलस्वरूप होता है और मस्तिष्क या सुषुम्ना के भीतर मिलने की अपेक्षा धरातल पर ही मिलता है । इसका स्थान बहुधा मस्तिष्क शिखर रहा करता
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