________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विकृतिविज्ञान
(१८)
वृषणों पर फिरंग का प्रभाव वृषणपिण्ड में बहिरन्तर्भवफिरंग (तृतीयावस्था ) के सर्वप्रथम लक्षण प्रकट होते हैं वहाँ से रोग अधिवृषणिका (epididymis) को पहुँचता है। यक्ष्मा में पहले अधिवृषणिका में रोग लगता है जहाँ से फिर मुख्य वृषण या वृषणपिण्ड में जाता है।
अन्य ऊतियों की तरह फिरंगिक वृषणपाक भी दो प्रकार हो सकता है:-एक फिरंगाबुंदीय और दूसरा प्रसरतान्तव जरठोत्कर्ष (diffuse fibrous sclerosis)। जो फिरंगार्बुद बनता है वह तान्तवऊति के एक सघन स्तर से आच्छादित विनष्ट ऊति का पुंज जैसा दिखता है जो वृषण के पिण्ड में रहता है। स्पर्श करने में वह पर्याप्त दृढ होता है उसका वर्ण आपीत श्वेत होता है । अन्य फिरंगार्बुदों की भाँति इसका मृद्वन न होकर यह धीरे धीरे प्रचूषित हो जाता है और इसका स्थान एक सघन तान्तव वणवस्तु ले लेती है। प्रायः वृषण मुष्कप्राचीर ( scrotal wall ) से अभिलग्न हो जाते हैं तथा अण्डधर या वृषणधर पुटक के स्तरों के बीच का अन्तराल अभिलुप्त हो जाता है कभी कभी थोड़ी मुष्कवृद्धि ( hydrocele ) भी मिल जा सकती है । वृषणों की अभिलग्नता चर्म तक प्रकट हो जाती है और आगे की
ओर एक फिरंगाबुंदीय व्रण भी बन सकता है जिसके कारण वृषण बाहर देखे जा सकते हैं। बाहरी तल पर वृषणों का देखा जाना वृषणवर्म ( hernia testis) कहलाता है। इसी व्रण में फिर द्वितीयक उपसर्ग लग सकता है जिसके कारण विद्रधि बन सकती है और फिरंगार्बुद का विनष्ट प्राय ( necrotic ) केन्द्रिय भाग चर्मधावन निर्मोक ( wash leather slough ) के समान उन्मुक्त हो जाता है । प्रभावित वृषण कुछ बड़े आकार का हो जाता है परन्तु उसमें शूल बिल्कुल नहीं मिलता।
प्रसर फिरंगिक जरठोत्कर्ष जब होता है तो वृषण के पिण्ड में शूलहीन तान्त्विक अपुष्टि ( fibrotic atrophy ) हो जाती है। यह आवश्यक नहीं कि वृषण का आकार कुछ बड़ा हो। यह तो कुछ छोटा हो जाता है और अत्यधिक कठिन हो जाता है इसके कारण कोई विशेष लक्षण उत्पन्न नहीं होते। अण्वीक्षण करने पर प्ररसकोशाओं और लसीकोशाओं की प्रसर भरमार होती है साथ में नवीन तान्तव अति बनती है तथा शुक्रिक ऊति ( spermatic tissue ) की अपुष्टि भी होती है। वृषण की काया में तान्तवऊति की पट्टियाँ श्वेत रेखाओं जैसी देखी जाती हैं आगे चलकर तन्तूरकर्ष अधिवृषणिका तक आ जाता है जिसके कारण सुषिरक अभिलुप्त हो जाता है तथा मुष्कवृद्धि उत्पन्न हो जाती है।
For Private and Personal Use Only