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फिरङ्ग
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फिरंगी विक्षतों में यह पाया जाता है पर तृतीयावस्था के विक्षतों में यह बहुत कम रहता है । इसकी अभिरंजना कठिनता से होती है पर संवर्ध सरलतापूर्वक किया जा सकता है ।
फिरंग का संक्रमण ४ प्रकार से हो सकता है : :
(१) प्रसंग (२) अंगसंस्पर्श (३) रक्तमार्ग ( ४ ) सहज ( congenital ) ।
प्रसंग या मैथुन द्वारा उपसृष्ट स्त्री पुरुष को तथा उपसृष्ट पुरुष स्त्री को यह रोग पहुँचा सकते हैं और ९५ से ९७ प्रतिशत फिरंगपीडित व्यक्ति प्रसंग या मैथुन के द्वारा ही फिरंग प्राप्त करते हैं । वेश्यागमन आधुनिक युग में इस रोग के प्रसार का सबसे बड़ा साधन है । रति ( मैथुन ) के कारण होने के कारण इसे रतिजन्य व्याधि ( Venereal Disease ) भी माना जाता है ।
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जब स्त्रीपुरुष मेढू योनि घर्षण करते हैं तो उसके कारण पुरुष की शिश्न की श्लेष्मकला में और स्त्री की योनि की श्लेष्मलकला में सूक्ष्मक्षत बन जाते हैं । फिरंगपीडित व्यक्ति के क्षत में होकर दूसरे व्यक्ति की क्षत वा अक्षत श्लेष्मलकला पर सुकुन्तलाणु आकर पड़ जाते हैं और वहाँ से प्रचूषित हो जाते हैं और फिरंग का कारण बनते हैं ।
कभी-कभी यह भी होता है कि मनुष्य के शिश्न पर फिरंग का कोई व्रण न हो पर वह स्त्री को फिरंग से पीडित कर दे । इसका कारण है मनुष्य के शुक्र का फिरंगोपसृष्ट होना । वीर्य के अन्दर निहित सुकुन्तलाणु स्त्री को फिरंग दे सकते हैं ।
यह तो सम्भव है कि अक्षत श्लेष्मलकला का भेदन करके सुकुन्तलाणु स्वस्थ स्त्री या पुरुष को उपसृष्ट कर दें पर यह कदापि सम्भव नहीं कि अक्षत चर्म पर पड़ा हुआ सुकुन्तलाणु शरीर के भीतर प्रविष्ट हो सके । अतः अंगसंस्पर्श मात्र से अभिप्राय क्षतिग्रस्त त्वचा का सुकुन्तलाणु से सम्बन्ध आना माना जाना चाहिए । मैथुन के पश्चात् पुरुष स्त्री का चुम्बन लेता है । चुम्बन प्रक्रिया ही कदाचित् ओष्ठ पर फिरंगीय व्रण की उत्पत्ति करती होगी ऐसा सहज ही माना जा सकता है क्योंकि गुप्ताङ्गों के अतिरिक्त फिरंग का विज्ञत ओष्ठ पर ही सबसे अधिक देखा जाता है । जो शल्यचिकित्सक या परिचारक फिरंगोपसृष्ट व्रणों पर कार्य करते हैं यदि असावधानतया उनको प्रयुक्त शस्त्र द्वारा अंगुली में क्षत हो जावे तो सुकुन्तलाणु अंगुली में प्रवेश करके वहीं विक्षतोत्पत्ति कर सकता है । गुह्याङ्गों के केश काटने के लिए प्रयुक्त उस्तरा कभी-कभी फिरंगोपसृष्ट हो जाता है उसीको जब कोई स्वस्थ पुरुष प्रयोग में लाता है तो उसे फिरंग हो सकता है ।
रक्त द्वारा फिरंगोपसर्ग की प्राप्ति का एक मात्र साधन स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में फिरंगी व्यक्ति के रक्त का संक्रामण ( transfusion of blood ) है ।
सहज मार्ग वह है जिसके द्वारा माता अपने शिशु में फिरंगोपसर्ग पहुँचाती है । फिरंग सुकुन्तलाणु ही फिरंगकारक है उसका प्रमाण यह है कि फिरंग के द्वारा होने वाले सब विक्षतों में और सदैव ही अल्पाधिक मात्रा में यह पाया जाता है तथा ४६, ५० वि०
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