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विकृतिविज्ञाम इन येचिमकाओं में किलाटीयन होता है। इनका आकार जब तक बढ़ता है उससे पूर्व ही रोगी प्रायः मर जाता है। इस कारण किलाटीयन प्रत्यक्ष नहीं हो पाता। तानिका से जहाँ विक्षत होता है उसके ठीक नीचे की मस्तिष्क ऊति में आघात हो जाता है। इस रोग में वातश्लेषकोशाओं का पर्याप्त प्रगुणन मिलता है तथा मस्तिष्क केशालों के परिवाहिनीय अवकाश में व्रणशोथात्मक कोशीय प्रतिक्रिया पर्याप्त मात्रा में देखने को मिलती है। मस्तिष्क ऊति का किनारा अण्वीक्षण करने पर असम और दन्तुर होता है। ____ यचिमकाएँ बहुधा एक गाढ़े स्राव के नीचे दबी हुई रहती हैं जो हरे से रंग का होता है । यह मस्तिष्काधार पर तथा धमिल्लक के उपरिष्ठ धरातल पर अधिक बनता है और मस्तिष्क शिखर पर नहीं। इस स्राव के कारण मस्तिष्कोद प्रवाह में बाधा पड़ सकती है। इस बाधा के कारण स्वल्प उदशीर्ष ( hydrocephalous ) प्रायः मिल सकता है।
मस्तिष्कोद (मस्तिष्कसुषुम्नातरल) की मात्रा बढ़ जाती है तथा उसपर आतति (tension) भी बढ़ जाती है । रोग की प्रारम्भिक तीवावस्था में वह आविल हो जाता है जिसमें बहुन्यष्टिकोशाओं की बहलता हो जाती है जो आगे चलकर लसीकोशाओं द्वारा बदल जाती है। तरल को स्थिर कर देने से सूक्ष्म जालक सा बन जाता है जिसे ठीक से अभिरंजित करने से जीवाणुओं का पता चल जाता है। रोग के प्रारम्भ में शर्करा तथा नीरेय इन दोनों की मात्रा घट जाती है दोनों में नीरेय बहुत अधिक घटती है। आगे चल कर फिर इन दोनों द्रव्यों की वृद्धि आरम्भ होती है । नीरेयों की कमी जो ६०० मि. ग्रा. प्रतिशत तक मिलती है रोग की पहचान कराने में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है। ___ मृदुतानिका (piameter ) में उपरोक्त जितने परिवर्तन होते हैं उनके कारण उसमें अधिरक्तता आ जाती है, कोशीय भरमार हो जाती है तथा वहाँ शोफ हो जाता है। साथ ही समीपस्थ मस्तिष्क बाह्यक में कुछ मृदुलता आ जाती है। इसके कारण प्रलाप का होना या ज्ञानेन्द्रियों का अतिचेत ( hyperaesthesia ) हो जाता है।
निलयस्तर (ependyma) तथा झल्लरीप्रतान भी गाढ स्राव से ढंक जाता है । पर निलय, मध्यसेतुभाग ( central commissure ) और छत्रिका (fornix) की प्राचीरें मृदुल हो जाती हैं।
रोगारम्भकाल में ग्रीवा का प्रत्याकर्षण तथा कर्निग चिह्न की अस्त्यात्मकता मिलती है जो प्रमस्तिष्कीय प्रक्षोभ के सूचक हैं। फिर आक्षेप होने लगते हैं । स्राव के द्वारा तृतीया और षष्ठी वातनाडियों के दबने से टेरता, द्विधा दृष्टि और वर्मपात (ptosis) आदि नेत्र चालिनीय ( oculomotor ) चिन्ह मिलते हैं। ____ अन्तकाल के समय मस्तिष्कोद की आतति से मस्तिष्क ऊति दब जाती है जिससे अचैतन्य का निर्माण होता है फिर संन्यासावस्था आकर मृत्यु हो जाती है।
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