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यक्ष्मा रोगियों में कर्ता होता है शेष एक तिहाई रोगी गव्य यचमादण्डाणु द्वारा पीडित होते हैं।
यह रोग सर्वाङ्गीण यक्ष्मोपसर्ग का ही एक भागरूप बनकर भी हो सकता है जो श्यामाकसम यचमा कर देता है अथवा अस्थि, सन्धि और वृक्कादि में विक्षत होने के कारण दण्डाणुरक्तता होती है जिससे भी मस्तिष्कछद प्रभावित हो सकती है । कभी-कभी तो उपरोक्त स्थानों के विक्षतों का पता न लगकर सर्वप्रथम मस्तिष्कछदगत विक्षतों का ही ज्ञान होता है।
मस्तिष्कछद में स्थित यक्ष्मविक्षत चुपचाप तथा इतस्ततः बिखरे पड़े रहते हैं। उनके द्वारा उस समय मस्तिष्कछदपाक होता है। जब वे ब्रह्मोदकुल्या या उपजालता. निकीयअवकाश ( sub arachnoid space ) में फूट जाते हैं। ___ यक्ष्मादण्डाणुओं द्वारा मस्तिष्क का उपसर्ग किस मार्ग द्वारा होता है यह अभी तक अनिश्चित सा ही है। इस सम्बन्ध में रिच का यह मत है कि उपसर्ग झल्लरीप्रतान ( choroid plexus ) द्वारा मस्तिष्कोद को जाता है जहाँ से ब्रह्मोदकुल्या ( subarachnoid space ) में हो जाता है। इसी कारण मस्तिष्क का आधार भाग इससे प्रभावित होता है । यदि उपसर्ग सीधा तानिकीय वाहिनियों द्वारा आता तो वह मस्तिष्काधार को पहले न प्रभावित करके मस्तिष्क शिखर ( vertex) को पहले प्रभावित करता है जो नहीं देखा जाता । ____ यक्ष्ममस्तिष्कछदपाक एक शिशु या बाल रोग है जो तरुणावस्था तक ही देखने में आता है।
जो श्यामाकसम यदिमकाएँ इस रोग में बनती हैं वे अधिकतर मस्तिष्क के आधार पर ( base of the brain ) पर खूब मिलती हैं। कभी-कभी स्राव के कारण वे ढंक अवश्य जाती हैं । यदि उन्हें स्पष्टतः देखना हो तो मध्य मस्तिष्क धमनी के किनारेकिनारे शंखपार्थान्तरा सीता ( lateral cerebral fissure ) में सरलतया मिल जाती हैं । मस्तिष्क के संवेल्लों ( convolutions ) में वे गहराई में छिपी रहती हैं। कभी-कभी कुछ धूसर वर्णाभ यदिमकाएँ मस्तिष्क गोलार्डों के ऊपरी धरातल पर दिखाई देती हैं जो धरातल के समीप ही किसी शान्त यदिमका के फट जाने को प्रकट करती हैं।
मृत्यूत्तर परीक्षाकाल में यदिमकाएँ देखने की एक विधि यह है कि मध्यमस्तिष्क धमनी और उसकी शाखाओं के समीप से एक टुकड़ा तानिका का उतार कर उसे जल में किसी काचपट्ट पर फैला दिया जावे और फिर पीछे की ओर अन्धकार करके ( over a dark back ground ) देखा जावे तो वे श्वेत या धूसरवर्ण की ग्रन्थिका सरीखी दिखाई देती हैं साधारण तौर पर उन्हें प्रत्यक्ष करना बहुत कठिन होता है। क्योंकि वे एक अन्धसूची (आल पिन) के सूक्ष्मसिर के बराबर बढ़ी होती हैं।
इन यचिमकाओं में वही अधिच्छदाभ कोशाओं का समूहन देखने में आता है। महाकोशाओं का निर्माण बहुत कम होने से उनका दिखाई देना कठिन होता है ।
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