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अष्टम अध्याय
यक्ष्मा यह एक महाभयानक व्याधि है जो प्रतिवर्ष सम्पूर्ण संसार के मरने वाले व्यक्तियों में से को अपने कराल पाश में आबद्ध कर इस असार संसार से मुक्त करने के लिए उत्तरदायी बनती है। यह राजयक्ष्मा, क्षय, शोष और रोगराद आदि नामों से पुकारी जाती है:अनेकरोगानुगतो बहुरोगपुरोगमः । राजयक्ष्मा क्षयः शोषो रोगराडिति च स्मृतः॥
(अष्टांगहृदय नि. स्था. अ. ५) इस रोग के प्रारम्भ होने से पूर्व कई रोग लगते हैं और जब यह रोग प्रगट हो जाता है तो भी अनेक रोग लगते हैं इसी से इसे रोगराट् , राजयक्ष्मा, क्षय वा शोष इन नामों से पुकारा जाता है। इन्हीं शब्दों की निरुक्ति करते हुए लिखा गया है कि
संशोषणाद्रसादीनां शोप इत्यभिधीयते। क्रियाक्षयकरत्वाच्च क्षय इत्युच्यते पुनः ॥ राज्ञश्चन्द्रमसो यस्मादभूदेषा किलामयः। तस्मात्तं राजयक्ष्मेति केचिदाहुर्मनीषिणः ॥ तथानक्षत्राणां द्विजानां च राज्ञोऽभूद् यदयं पुरा । यच्च राजा च यक्ष्मा च राजयक्ष्मा ततो मतः ।। देहौषधक्षयकृते क्षयस्तत्सम्मवाच्च सः । रसादिशोषणाच्छोषो रोगराट् तेषु राजनात् ।।
कहने का तात्पर्य यह कि रसादि धातुओं का इस रोग में शोषण हो जाता है इस कारण इसे शोष कहते हैं। क्रियाशक्ति का, देह का तथा ओषधियों का अत्यधिक क्षय करना पड़ता है इसलिए इसे क्षय कहकर पुकारते हैं । नक्षत्रेश एवं द्विजेश चन्द्रमा को शापवशात् यचमा रोग हुआ इस कारण से तथा अनेक रोगों से परिवृत रोग यक्ष्मा उसका राजा इस कारण राजयक्ष्मा यह नाम भी इसका प्रसिद्ध हुआ है। हमने पारिभाषिक शब्दनिर्माण में सहायता पाने की दृष्टि से तथा लोक में भी प्रचलित होने से राजयक्ष्मा या शोष या अन्य नाम न लेकर यक्ष्मा को ही अपनाया है। क्योंकि यह सब रोगों में अलग प्रगट होता है और विशिष्टता रखता है इस कारण इसे रोगराट इस उपाधि से भी विभूषित कर दिया गया है। ___ आधुनिक शब्दावली का अवलोकन करने पर भी हमको कई शब्द मिलते हैं जिनमें ट्यूबरक्युलोसिस (यमा ), थायसिस (शोष), कञ्जम्पशन (क्षय) तथा कैप्टेन आव डैथ (रोगराट) मुख्य है। आधुनिक काल में ट्यूबरक्युलोसिस या बैसीलस काक्स इन्फेक्शन ( bacillus koch's infection ) इन नामों द्वारा इस रोग को पुकारा जाता है।
कुछ रोग ऐसे हैं जो शरीर के प्रत्येक अंग पर कुछ न कुछ प्रभाव डालते हैं और इसके कारण शरीर के तत्तत् अंग में विशिष्ट प्रकार की विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
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