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यदमा
मैक्कौडौंक ने दिया है । उनका कहना है कि अल्पउप्र यचमदण्डाणुओं के कारण कठिन यक्ष्मिकाएँ ( hard tubardles ) बनती हैं जो पृथक्-पृथक् होती हैं जिनके बाह्य भाग में लसीकोशा होते हैं भीतर अधिच्छदाभ कोशा भरे होते हैं थोड़े से महाकोशा रहते हैं तथा थोड़े यक्ष्मादण्डाणु उनके अन्दर देखे जाते हैं। दूसरे प्रकार की मृदुल यचिमकाएँ ( soft tubercles ) होती हैं जिनका निर्माण उग्र यक्ष्मदण्डाणुओं द्वारा होता है ये प्रसर होती हैं इनमें कोशा ढीले ढीले विन्यस्त रहते हैं उनके किनारे अनिश्चित होते हैं, उनमें कई प्रकार के कोशा मिलते हैं अतिनाश बहुत होता है तथा उनमें यक्ष्मादण्डाणुओं का बहुत बड़ा भण्डार देखा जाता है। कठिन यदिमकाओं को यक्ष्मादण्डाणुओं के भास्वविमेदि ( phospholipins) बनाती हैं जब कि मृदुल यचिमकाएँ यक्ष्मादण्डाणुओं के सिक्थों ( waxes ) के द्वारा बनती हैं।
उत्स्यन्दी प्रतिक्रिया-अभी तक हम एक ऐसे प्राणी की यचिमका के विकास का विचार कर रहे थे जो पहली बार यक्ष्मा द्वारा पीडित हुआ हो। ऐसी अवस्था में हम विशुद्ध उत्पादी प्रतिक्रिया भले प्रकार देख सकते हैं या समझ सकते हैं । अब यदि हम मानव जीवन पर दृष्टिपात करें जहाँ उपसर्ग बराबर मानव पर प्रहार करता रहता है और कभी-कभी तो आभ्यन्तर में समाया उपसर्ग प्रभाव करने लगता है तो हमें उस प्राणी की याद आ जावेगी जिसे फिर से दूसरी बार यक्ष्मा द्वारा उपसृष्ट कर दिया गया हो। उत्तरजात (secondary) उपसर्ग के लगते ही उत्पादी प्रतिक्रिया की विशुद्धता समाप्त हो जाती है। वहाँ तो प्राणी में प्रतीकारिता और अनूर्जा नामक दो और शक्तियों को समझ लेना पड़ता है। फानपिर्केट प्रतिक्रिया में जहाँ पहले अन्तःक्षेप का प्रभाव शान्ततापूर्वक होता है दूसरे अन्तःक्षेप में कुछ ही घण्टों में वाहिनियाँ चौड़ जाती हैं लसी भर जाती है और बहुन्यष्टि कोशा दौड़ते चले आते हैं जिसके कारण अन्तःक्षिप्त भाग लाल पड़ जाता है और सूज जाता है। थोड़े काल पश्चात् यह व्रणशोथात्मक उपद्रव दब जाते हैं और प्रगुणनात्मक परिवर्तन होकर यदिमका का निर्माण हो जाता है। प्राथमिक उपसर्ग में जितनी सरलता से और धीरे-धीरे ये परिवर्तन यदिमका का निर्माण करते हैं वैसा अब नहीं मिलता। ___यहाँ शीघ्र यदिमका का निर्माण होता है और प्रतिक्रिया द्रुतगति से होती है और अतिशीघ्र शान्त भी हो जाती है जिसके कारण विक्षत शीघ्र ही लुप्त भी हो जाता है। ये जितनी त्वचागत प्रतिक्रियाएँ देखी जाती हैं वे सब अनूर्जा (allergy ) के कारण देखी जाती हैं तथा अनूर्जा के साथ साथ रक्त में लसीकोशोत्कर्ष होता है। यक्ष्मा की अन्तिमावस्था में यह अनूर्जा खतम हो जाती है और उसका स्थान व्यूर्जा ( anergy ) ले लेती है। व्यूर्जा होने पर त्वचागत प्रतिक्रियाएँ नास्त्यात्मक हो जाती हैं तथा लसीकोशोत्कर्ष समाप्त हो जाता है । ___ ये जो अनूर्जा के कारण अनेक प्रतिक्रियाएँ होती हैं उन्हीं को उत्स्यन्दी प्रतिक्रियाएँ कह कर पुकारा जाता है ये सब द्वितीयक उपसर्ग ( secondary infection ) को बतलाने वाली हैं।
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