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५६२.
विकृतिविज्ञान
प्रकार का विमत्स्राव निकल कर अन्य कुण्डलियों को एक दूसरे के साथ अभिलग्न कर देता है । यह स्राव ( उत्स्यन्द) आगे तान्तव ऊति में परिणत हो जाता है । इसमें मिकाएँ ढूंढने पर भी बहुत कम मिलती हैं क्योंकि वे स्राव ( exudate ) के नीचे छिपी रहती हैं । वपा या वपाजाल (omentum) मुड़ कर एक लम्बे अर्बुद का आकार बना लेता है जो उदर के ऊर्ध्व भाग में पड़ा रहता है । जब उसे बाहर से स्पर्श करते हैं तो एक पुञ्ज ( doughy mass ) सा लगता है । अन्य कुण्डलों में किलाटीयन के बड़े-बड़े क्षेत्र देखने में आते हैं । ये कुण्डल उदरप्राचीर के साथ अभिलग्न हो जाते हैं और उनमें छिद्रण हो जाता है जिसके कारण मल नाडीव्रण ( faecal fistula ) बन जाते हैं ।
कभी-कभी यचमोदरच्छदपाक के आर्द्र और शुष्क दोनों रूप मिल जाते हैं जिसके कारण तरल के गह्वर इतस्ततः मिलते हैं तथा सघन अभिलाग भी पाये जाते हैं । परमपुष्टिक यक्ष्मा (उण्डुकीय यक्ष्मा )
परमपुष्टि यक्ष्मा (hypertrophic tuberculosis ) को ब्वायड आन्त्रिक यक्ष्मा का ही एक रूप नहीं मानता। वह उसे क्रौनरोग (crohn's disease ) से सम्बद्ध कहता है तथा पेश्युत्कर्ष ( sarcoidosis ) उसे यक्ष्मा नहीं' मानता है । यह रोग उण्डुक (caecum ) या शेषान्त्रक के उण्डुकीय प्रान्त में बालकों में देखा जाता है । इसमें न तो किलाटीयन होता है और न व्रणन अपि तु तन्तूत्कर्ष खूब होता है जिसके कारण श्लेष्मकला का परमचय ( hyperplasia ) होता हुआ देखा जाता है । श्लेष्मकला ग्रन्थिक होकर अन्त्र के सुषिरक में उठती हुई सी ( projecting ) प्रकट होती है । इन प्रधिकाओं में महाकोशा भले प्रकार से बने हुए देखे जाते हैं परन्तु किलाटीयन नहीं मिलता आगे चलकर उनका स्थान तन्तुरुहू ( filbroblastic ) प्रतिक्रिया ले लेती है । अन्त्र प्राचीर में व्रणशोधात्मक तान्तव ऊति अतिवेध (permeate) कर जाती है इसके कारण आँतें बहुत अधिक स्थूलित हो जाती हैं, कठिन हो जाती हैं तथा अनाम्य ( rigid ) हो जाती हैं। इससे आँतें इतनी घिर जाती हैं और सुषिरक इतना संकुचित हो जाता है कि उसके बन्द होने की नौबत आ जाती है । शस्त्रकर्म करते समय ऐसा लगता है कि मानो वह एक कर्कट ( कैंसर ) ही हो जिसकी पुष्टि प्रादेशिक लसग्रन्थियों की प्रवृद्धि भी कर देती है पर वह कर्कट नहीं होता यह भी सत्य है ।
यह रोग आरोही आँत की ओर भी बढ़ सकता है तथा पीछे शेषान्त्र में भी बढ़ सकता है। इस रोग के साथ कोई विशेष लक्षण नहीं होते परन्तु आगे चल कर आन्त्रिक अवरोध हो जा सकता है । अन्य विद्वान् भी इसके यदमाजन्य होने में सन्देह करने लगे हैं ।
1. A non caseating so-called hypertrophic form used to be described occurring. in the caecum. These cases are more related to crohn's disease or sarcoidosis Can to tuberculosis.
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