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विकृतिविज्ञान (dall ) होना मुख्य है। स्पर्श करने पर वाचिक लहरियों ( vocal fremitus ) की वृद्धि मिलती है। विवर के ऊपर नालिकीय श्वसन ( tubular breathing ) तथा जोर की श्वसनध्वनि (amphoric ) भी मिलती है। ये सब चिह्न फुफ्फुसच्छदीय स्थौल्य के कारण कम हुए मालूम पड़ते हैं। जब तक तन्तूत्कर्ष अत्यधिक नहीं होगा तब तक श्वास की मन्दता काष्ठीय ( wooden) नहीं होगी। जब कभी बुबुद् ध्वनि ( moist rales ) होने लगे तो किलाटीय पदार्थ का फूटना प्रतिलक्षित होता है। विवरों के चौड़ने पर ये ध्वनियाँ और अधिक गडगडाहटयुक्त (gurgling ) हो जाती हैं । कांस्यक्रोड (उरस्तोय) के कारण घर्षणध्वनि आरम्भ में तो मिलती है पर आगे जब अभिलाग बन जाते हैं तो नहीं मिलती।
(८) आन्त्र पर यक्ष्मा का प्रभाव [ आन्त्रिक या आन्त्रयक्ष्मा ] फुफ्फुसयमा का सर्वसाधारण एक उपद्रव आन्त्र का व्रणन होता है। हम उसी व्रणात्मक यक्ष्मा ( ulcerative tuberculosis) का वर्णन नीचे दे रहे हैं।
शैशवकाल में यक्ष्मोपसृष्ट दुग्धपान करने से सर्वप्रथम गव्यकवकवेत्राणुजन्य यमविक्षत आन्त्र में ही मिलते हैं । पर अमेरिका में गव्यप्रकार की यक्ष्मा नहीं मिलती
और न भारत ही उसका शिकार है । वह तो आंगल बालकों में पाई जाती है। ___ कुछ विद्वानों का यह विचार है जिसे लोक भी स्वीकार कर सकता है कि फुफ्फुस यक्ष्मा से पीडित व्यक्ति जब अपना ष्ठीव बाहर न थूककर निगल लेता है तो ऐसा करने से वह आन्त्र में यक्ष्मव्रण उत्पन्न करने में समर्थ हो जाता होगा। परन्तु यह बात बहुत सत्य यों नहीं है कि हमने वर्षों ष्ठीव निगलने वाले रोगियों को देखा है जिनको आन्त्र में एक भी विक्षत या लक्षण नहीं मिल सका। इसकी विशेष खोज करने के लिए ७२ वण्टमूषों (guinea pigs ) को यक्ष्मोपसृष्ट ष्ठीव खिलाया गया उनमें से ३५ को साथ में पर्याप्त मात्रा में जीवति ग (vitamin C ) दिया गया तथा ३७ को जीवति ग बहुत कम दिया गया। यह सभी जानते हैं कि वण्टमूषों पर यक्ष्मा का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। परन्तु इस भक्षण प्रयोग का परिणाम यह देखने में आया कि जीवति ग पानेवाले ३५ वण्टभूषों में केवल २ को आन्त्रगत यक्ष्मा हुआ और उनकी आँतों में यक्ष्मवण बने तथा जिन ३७ को अल्पमात्रा में जीवति ग दिया गया था उनमें से २६ को यह रोग लगा हुआ पाया गया। ___ उपरोक्त प्रयोग का स्पष्ट अर्थ यह है कि यदि जीवनीय द्रव्य हमें भरपूर मिलते रहेंगे तो चाहे हम फुफ्फुस विवरों का सम्पूर्ण ठीव महास्रोत में चला जाने दें यक्ष्म व्रण आँतों में बनने वाले नहीं। जीवति ग के साथ जीवति क और घ भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
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