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यक्ष्मा चोल ही बढ़ता है अन्तश्चोल भी प्रगुणित होकर अभिलोपी अन्तश्छदपाक ( endarteritis obliterans ) होता हुआ देखा जाता है जिसके कारण वाहिनी का मुख तंग होते-होते पूर्णतः लुप्त तक हो जाता है। वाहिनियों का यह परिवर्तन प्रभु की अनन्त अनुकम्पा का वास्तविक परिचय मानना चाहिए जिसके कारण रक्तस्त्राव की प्रवृत्ति की पर्याप्त रोकथाम हो जाती है । इस रोग के साथ में थोड़ा या बहुत श्वासनलिकापाक ( bronchitis) अवश्य मिलता है।
उपरोक्त सम्पूर्ण परिवर्तन यक्ष्मादण्डाणु की कृपा के प्रत्यक्ष परिणाम माने जाते हैं। इन परिवर्तनों के अतिरिक्त, विक्षतों के समीप के वायुकोशाओं से कुछ तो अवपतित हो जाते हैं, कुछ में स्रावी लसी भर जाती है तथा कुछ में प्रसेकी ( catarrhal) कोशा भरे हुए देखे जाते हैं। इनका भी कारण यक्ष्मविष का प्रसरण ही माना जाता है । स्राव के अन्दर जालक तन्तु ( reticulum fibres ) भी मिल सकते हैं। जब रोग अधिक तन्वाभरूप (fibroid form) धारण करने लगता है तो वायु कोशाओं के आस्तरण के कोशाओं में बहुत परिवर्तन देखने में आता है अर्थात् वे चिपिटितरूप (flattened form ) त्याग कर घनाकाररूप ( cubical form) धारण कर लेते हैं । इस परिवर्तन का परिणाम यह होता है कि वायुकोशाओं की रचना ग्रन्थीक (glandular ) हो जाती है।
यक्ष्मकिलाटीय श्वसनक यदि अधिक संख्य यमदण्डाणु अल्प प्रतीकारितायुक्त प्राणी पर आक्रमण करें तो उसके कारण जो विकृत शारीर देखने में आता है वह बहुत भिन्न होता है तथा जो रोग बनता है वह बहुत तीव्रस्वरूप का होता है। यहाँ उत्पादी प्रतिक्रिया बिल्कुल नहीं मिलती उसके स्थान पर एक प्रकार का उत्स्यन्दी विक्षत (exudative lesion) बनता है। ऊतियों के द्वारा रोग का कोई प्रतिरोध नहीं होता तथा रोग दावाग्नि के समान फुफ्फुसों में फैल जाता है। इसे हम तीव्र शोष ( acute phthisis ) या द्रुतगामी क्षय (galloping consumption ) के नाम से पुकारते हैं ।
- इस रोग का प्रसार दो प्रकार से होता होगा। एक प्रकार सम्पूर्ण फुफ्फुस में प्रत्यक्ष प्रसार ( direct extension ) का हो सकता है जिसके कारण एक दूसरे से सटे हुए क्षेत्र एक के उपरान्त दूसरे प्रभावित होते चले जाते हैं। दूसरा प्रकार यह हो सकता है कि यक्ष्मपदार्थ को श्वास नलिकाएँ प्रचूषित कर लें और गाण्विक किलाटीय श्वसनक ( acinar caseous pneumonia ) उत्पन्न हो जावे। ये विक्षत शीघ्र ही एक दूसरे से मिलकर युगपच्चलित ( confluent ) हो सकते हैं। विक्षतीय युगपच्चालन का परिणाम यह होता है कि जहाँ तन्तुकिलाटीय यक्ष्मा में विक्षत पृथक्पृथक् देखने में आते हैं इस रोग में श्वसनकीय संपिण्डन ( consolidation ) देखा जाता है । यह संपिंडन फुफ्फुप के एक खण्ड में भी हो सकता है, उसके एक भाग में भी हो सकता है अथवा सम्पूर्ण फुफ्फुस में भी मिल सकता है। इस अवस्था में
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