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विकृतिविज्ञान
अधिक संख्य जीवाणुओं की रक्त में उपस्थिति तथा प्रतीकारिताशक्ति की कमी ये दोनों बातें जब तक पूरी पूरी नहीं होंगी तब तक यह रोग होना सम्भव नहीं है । जहाँ रक्तधारा में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में यच्मादण्डाणु पहुँचते हैं तथा जहाँ शारीरिक प्रतीकारिता उच्च कोटि की है वहाँ केवल शाकाणुरक्तता ( bacteraemia ) ही होना सम्भव है तथा ऐसी अवस्था में उत्तरजात विक्षतों का निर्माण होना बहुत ही कठिन देखा जाता है । या तो दण्डाणु मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं या फिर दूरस्थ भागों में स्थानसीमित उपसर्ग देखा जाता है । कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसी दशा में सर्वाङ्गीण उपसर्ग नहीं होता है ।
यह रोग लक्षणों की दृष्टि से आन्त्रिक ज्वर की विषरक्तता से मिलता जुलता होता है । पहले कुछ दिन धीरे-धीरे बढ़ता हुआ ज्वर आता है जो आगे चलकर अर्द्धविसर्गी ( remittent ) हो जाता है। ज्वर के साथ में आरम्भ में शिरःशूल तथा शीतकम्प ( shivering ) भी होता है; आगे चलकर अत्यधिक क्षीणता, प्रलाप तथा श्रान्ति ( exhaustion ) पाई जाती है । रोग की प्रारम्भिक अवस्था में किसी विशेष अंग के प्रभावित होने से उत्पन्न विशिष्ट लक्षण देखने में नहीं आते पर मरणासन्न अवस्था में मस्तिष्कछदोपसर्ग के लक्षण मिलते हैं और मृत्यु संन्यासावस्था ( comatose condition ) में होती है । यह रोग १३ से ३ मास तक रहता है ।
मृत्यूपरान्त परीक्षण करने पर शरीर के लगभग सभी अंगों में यचिमकाएँ बनी हुई और ऊतियों में जड़ी हुई देखने में आती हैं। केवल ऐच्छिक पेशियाँ, स्तनग्रन्थियाँ और अवटुकाग्रन्थि में वे नहीं मिलतीं । फुफ्फुसों में ये यदिमकाएँ सर्वाधिक मिलती हैं । इन यमिकाओं में कुछ धूसर और कुछ पीत वर्ण की होती हैं जो प्रकट करती हैं कि उपसर्ग की एक के पश्चात् दूसरी लहरें ( waves of infection ) आती रही हैं । ये सम्पूर्ण विक्षत पृथक्-पृथक् ( discrete ) होते हैं तथा उनके पंडित होने के लिए आवश्यक समय न मिलना ही इसका कारण है ।
यक्ष्मा के सहायक कारण
१ - वय तथा लिंग - जीवन के प्रथम पाँच वर्षों में जब कि रोग प्रतीकारिता शक्ति पूर्णतः अनुपस्थित रहती है उपसर्ग की प्राप्ति तथा मृत्यु की संख्या बहुधा उच्च रहती
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है । ज्यों-ज्यों बालक या बालिका बड़ी होती जाती है उसके शरीर में रोगनाशक विजयवाहिनी शक्ति का उदय होने लगता है जिसके कारण तारुण्य में मृत्युसंख्या कम
रहती है। उसके पश्चात् पुनः यह
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अपेक्षा कुछ पहले यह बढ़ती है में मृत्यु संख्या अधिक होती है; होती है ।
संख्या बढ़ने लगती है । युवतियों में युवकों की इसी कारण २० से लेकर ३० वर्ष तक की युवतियों पुरुषों में भारतवर्ष में ३६ से ४५ वर्ष तक अधिक
बालकों में aourasवेत्राणुजन्य उपसर्गाधिक्य रहने से विक्षत फुफ्फुस में प्रारम्भिक होता है । वहाँ से लसग्रन्थियों में होता हुआ अस्थि- सन्धियों में पहुँच जाता है और जिसे हम शस्त्रयक्ष्मा ( surgical tuberculosis ) कहते हैं जिसमें
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