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विकृतिविज्ञान सन्धिकला में निम्न परिवर्तन सन्धिगत यक्ष्मा होने पर मिला करते हैं :
१. श्यामाकसम तीव्रयक्ष्मा-जब अस्थिशिर को फोड़ कर द्रुतगति से सन्धायीकास्थियों में होकर उपसर्ग सन्धिगुहा में प्रवेश करता है। इसके कारण महापुंज उपसर्ग ( massive infection ) देखा जाता है। तीव्र सर्वाङ्गीण यक्ष्मा के कारण सन्धिकला अधिरतीय ( hyperaemic ) हो जाती है और उसमें अनेक तुद्र श्यामाकसम यचिमकाएँ जुड़ी हुई देखी जाती हैं।
२. प्रसरस्थौल्य या श्वेतार्बुदिका ( tumor albus )-यह एक प्रकार की श्वेत वर्णीय सूजन है जो प्रायः देखी जाती है इसी का एक प्रकार प्रार्बुदिका सन्धिकलापाक ( synovitis tuberosa ) कहलाता है।
३. लस्य उत्स्यन्दन ( serous effusion ) इसे उदसंचय ( bydrops ) भी कहते हैं।
प्रसरस्थौल्य ( diffuse thickening ) होने का मुख्य कारण उपसन्धिकलीय ऊतियों में यचिमकाओं का उत्पन्न हो जाना तथा सन्धिकला की झल्लरों ( firinges ) में बहुत अधिक अधिरक्तता होना या मानना चाहिए। ऊपर से सन्धि खोलकर देखने पर ये यदिमकाएँ दिखलाई नहीं देतीं पर यदि सन्धिकला को भी काट दिया जावे तो उसके नीचे की ऊतियों में यचिमकाएँ पाई जाती हैं। सन्धिकलापुंज ( synovial masses ) मृदुल तथा दृढ़ दो प्रकार का हो सकता है। मृदुल तब होगा जब उसमें श्लिषीय विहास ( myxomatous degeneration ) के लक्षण पाये जावेंगे । दृढता उसमें तब आवेगी जब उसके अन्दर तान्तवऊति बढ़ जावेगी। ज्यों ज्यों उपसर्ग बढ़ता चलता है इन ऊतिचयित पुंजों में किलाटीयन प्रारंभ हो जाता है । किलाटीयन के उपरान्त तरलन होता है । यदि कुछ अधिक दिन से सन्धि में यक्ष्मा का प्रवेश हुआ तब तो उसमें यक्ष्मपूय ( tuberculous pus ) मिल सकता है परन्तु साधारणतः सन्धि में सन्धिश्लेष्मा की बहुत मात्रा देखी नहीं जाती पर उसकी जो श्वेतवर्णीय सूजन देखने में आती है उसका एक कारण सन्धिकला का परमचय है और दूसरा कारण परिसन्धीय मृदुल ऊतियों में उपसर्ग का पहुँच जाना है जिसके कारण कभी कभी शीतविद्रधि ( cold abscess ) तक बन जाता है। सन्धिकला के ऊपर कभी कभी तन्स्वि जम जाती है जो बाद में टूट जाती है उसकी आकृति खरबूजे के बीज जैसी हो जाती है ऐसे दशाङ्गलीय बीजाकारी पिण्ड ( melon-seed - bodies ) सन्धिगुहा में पड़े हुए बहुत देखे जाते हैं। ये पिण्ड यक्ष्म सन्धिकण्डरापाक ( tenosinovitis ) में बहुधा मिलते हैं।
आगे चलकर यमसन्धिपाक में रोग का आक्रमण सन्धायीका स्थि (articular cartilage ) पर होता है। यदि अस्थिशिरीय अपरदन के कारण सन्धि में यक्ष्मोपसर्ग हुआ है तो यह कास्थि दोनों ओर से उपसर्गान्वित हो जाती है। ऐसी अवस्थाओं में सन्धायीकास्थि के अस्थीय धरातल पर अपरदन ( erosion ) एक
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