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विकृतिविज्ञान है और बोलने में कष्ट होने लगता है। आगे चलकर व्रणों पर पूयजनक जीवाणु अपना अधिकार जमा कर खूब पूयोत्पत्ति करते हैं और विधि बनाते हैं उससे कास्थियों की ऊतिमृत्यु हो जाती है तथा यदि पूय श्वसन के साथ फुफ्फुस में चला गया तो श्वसनक बन जाता है और मार डालता है।
श्वासनलिका या क्लोमनलिका में भी उप अधिच्छदीय यदिमकाएँ बन सकती हैं जो उपरिष्ट भाग में क्षुद्र होती हैं पर गहराई में होने पर बहुत विस्तृत हो सकती हैं उनमें भी वणन और पूयजनक उपसर्ग लग सकता है।
(७) फुफ्फुस पर यक्ष्मदण्डाणु का प्रभाव [फौफ्फुसिक या फुफ्फुसयक्ष्मा ]
(Pulmonary Tuberculosis ) यमा के सम्बन्ध में साधारणतया जो पहले लिखा जा चुका है हो सकता है कि इस प्रकरण में उसकी कुछ पुनरावृत्ति हो जावे परन्तु फुफ्फुस में यक्ष्मा का जो महत्व पूर्ण स्थान है उसे व्यक्त करना हमारा पहला उद्देश्य है।
उपसर्ग की रीति-यमादण्डाणु किस रीति से फुफ्फुसों में पहुँचता है इसके सम्बन्ध में ऐकमत्य नहीं है । एक प्राणी को हम प्रयोगात्मक रूप से त्वचा के द्वारा उपसृष्ट कर सकते हैं, श्वसन के द्वारा भी वह यक्ष्मा का शिकार बन सकता है और मुख द्वारा अन्तर्ग्रहण करके भी क्षय से पीड़ित किया जा सकता है। इन्हीं सब प्रकारों से या विधियों से एक मनुष्य भी यक्ष्मा से संत्रस्त होता है पर यह कहना कि कौन विधि अधिक महत्व रखती है कठिन है। ___उपसर्ग सहज ( congenital ) भी हो सकता है और ब्वायड का विश्वास है कि ऐसा अवश्य होता है पर क्या वह पुरुष के शुक्रद्वारा होता है इसके सम्बन्ध में पश्चिमी देशों के विद्वानों के पास एक भी उदाहरण नहीं है। हाँ, माता के अपरा द्वारा उपसर्ग जाने के अनेकों उदाहरण हैं। सहज यक्ष्मा कितने प्रतिशत देखी जाती है यह अभी तक ठीक-ठीक आँका नहीं जा सका है।
संस्पर्श द्वारा यक्ष्मा का प्रसार शल्य चिकित्सकों ( surgeons ) को लग सकता है जो यक्ष्म विक्षतों पर कार्य करते हैं । वधाजीवियों को लग सकता है जो यक्ष्मपीडित पशुओं का मांस काटते हैं तथा वैकारिकीविद् (विकृतिवेत्ताओं) को लग सकता है जो यम दण्डाणुओं पर कार्य करते हैं पर यह रीति भी कोई अधिक महत्त्व की नहीं है।
अब जो दो रीतियाँ रह गईं या तो उपसर्ग मुखमार्ग से अन्तर्ग्रहण ( inges. tion ) द्वारा हो या श्वसन मार्ग से हो। इन दोनों में अधिक महत्त्वपूर्ण विधि है श्वसन द्वारा उपसर्ग के फुफ्फुस में पहुँचने की। मुख से साँस लेने में दण्डाणु फुफ्फुस में खींचा जा सकता है, या थूके हुए ष्ठीव के बिन्दूत्क्षेप द्वारा मुख में प्रविष्ट हो सकता है अथवा
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