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यक्ष्मा
गणन ७०-८० प्रतिशत तक देखा जाता है। दूसरे दिन वहाँ बृहत् एकन्यष्टि भ्रमणशील कोशा जो जालकान्तश्छदीय ऊतियों द्वारा उत्पन्न होते हैं इन उपसृष्ट बहुन्यष्टि कोशाओं के समीप आ जाते हैं तथा तीसरे दिन वे दण्डाणु पुंजों के चारों ओर कई-कई जुड़कर बड़े-बड़े महाकोशाओं ( special giant cells) का रूप धारण कर लेते हैं। क्योंकि बहुन्यष्टिकोशा एकन्यष्टिकोशाओं के साथ मिलकर महाकोशा बनते हैं हम यक्ष्मविक्षतों में उस पूय का दर्शन नहीं पाते जो पूयजनक उपसर्गों में बहुन्यष्टियों के द्वारा बनता है। यहाँ सितकोशोत्कर्ष ( leucocytosis ) रोक दिया जाता है।
सारांश यह कि स्थानिक ऊति की प्रतिक्रिया को हम उसके कोशाओं के सञ्चलन ( mobilisation ) तथा रूपान्तरण (metamorphosis ) से जान सकते हैं। कोशाओं का रूपान्तरण अधिच्छदाभकोशाओं ( epitheloid cells), महाकोशाओं ( giant cells ) तथा गोलकोशीय भरमार ( round celled infiltration) में होता है। अधिच्छदाभ कोशा काफी बड़े आकार के होते हैं वे देखने में अण्डाभ होते हैं उनका प्ररस अम्लप्रिय (acidophil ) होता है तथा उनकी न्यष्टि कुछ लम्बोतरी होती है और उसमें अभिवर्णि ( chromatin ) की मात्रा कम होती है। इनका नाम अधिच्छदाभ इसलिए है कि वे अधिच्छदीय कोशाओं के तुल्य होते हैं वे वायकोशीय अधिच्छद ( alveolar epithelium ) से उत्पन्न नहीं होते हैं अपि तु वे जालकान्तश्छदीयसंस्थान के प्रोतिकोशाओं ( histiocytes ) द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं। ये कोशा अत्यधिक भक्षणकार्य करते हैं। इनके अनेक विद्वानों ने विभिन्न नाम दिये हैं। . ज्यों-ज्यों समय बीतता जाता है अधिच्छदाभ कोशाओं का कटिबन्ध बढ़ने लगता है और उनके साथ-साथ परिवाहिनीय लसावकाशों ( peri vascular lymphatic spaces ) से तथा लसवहाओं से बहुत से लसकोशा (lymph corpuscles) वहाँ एकत्रित होने लगते हैं। इसी को गोलकोशीय भरमार ( round-celled infiltration ) कहा जाता है। - इस क्षेत्र में जहाँ अधिच्छदाभ कोशाओं का जमाव है और गोलकोशीय भरमार हो रही है नई रक्तवाहिनियों का निर्माण नहीं होता इसके कारण यदिमक अवाहिन्य (avascular ) ही रहती है। अतः यक्ष्मादण्डाणु के उत्पाद विनाशक कार्य में रत रहते हैं, वहाँ पर रक्त का आगमन नहीं होता है तथा समीपस्थ रक्तवाहिनी में अभिलोपी अन्तश्छदीयपाक ( obliterative endarteritis) हो जाता है इस कारण यक्ष्मनाभि के केन्द्र भाग को कोई पोषण न मिलने से उसमें आतश्चित नाश (coagulative necrosis) हो जाता है। नष्ट पदार्थ पनीर (किलाट ) जैसा होता है और इस प्रक्रिया को किलाटियन ( caseation ) कहा जाता है। इसका विस्तृत विवरण आगे दिया जायगा। ... एक रेखाचित्र ( diagram ) की दृष्टि से यदि विचार किया जावे तो एक यमिका में हमें निम्न पदार्थ मिलेंगे:
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