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विकृतिविज्ञान
इस कारण विन्दूत्क्षेप ( droplet infection ) द्वारा यह रोग अधिकतर फैलता है । कुछ भी हो श्वसन द्वारा यक्ष्मा मुख्यतः फैलता है इसे हमें इसलिए और मान लेना चाहिए कि इस रोग का मुख्य केन्द्र फुफ्फुस रहते हैं तथा जो व्यक्ति क्षयी के अति समीप रहता है उसे ही यह रोग सर्वप्रथम पकड़ता है। इन दोनों का अर्थ श्वसन द्वारा उपसर्ग का फैलना ही माना जाना चाहिए ।
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Pari का ऐसा कथन है कि श्वसन मार्ग द्वारा यह उपसर्ग फुफ्फुसों में नहीं पहुँचता क्योंकि उसे फुफ्फुस का पचमल अधिच्छद ( ciliated epithelium ) अन्दर जाने से रोकता है । पर उसी ने यह भी सिद्ध किया है कि प्राङ्गारिक कण (carbon particles ) जिन्हें आमाशय में प्रविष्ट किया था उनमें से कुछ फुफ्फुस में भी मिले। यह उसी के वाद को स्वयं ही काट देता है । जब प्राङ्गारिक कणों पर पक्ष्मल अच्छिद की गतिविधि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता तो कोई आश्चर्य नहीं कि यक्ष्मा दण्डाणु भी इस गतिविधि से साफ बच जाता हो ।
एक बार जब औपसर्गिक पदार्थ वायु मार्ग द्वारा फुफ्फुसों में पहुँच गया कि उसे भी एक बाह्य पदार्थ (foreign material ) की भाँति ही फुफ्फुस द्वारा व्यवहार किया जाता है । वह पदार्थ अन्तश्छदीय भक्षिकोशाओं ( महाकोशाओं —marcrocytes ) द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है जो उसे समीपतम लसाम ऊति के सूक्ष्म सिध्म तक ले जाते हैं ये सिध्म फुफ्फुस की अन्तरालित ऊति में पर्याप्त मात्रा में इतस्ततः फैले रहते हैं । इस लसाभ ऊति में ही सर्वप्रथम औपसर्गिक नाभि उत्पन्न होती है । इस स्थान से लसवहाओं द्वारा यह उपसर्ग वृन्तयुस्थ ( at hilum ) प्रादेशिक लसग्रन्थियों (regional lymph gland ) तक पहुँचता है |
यदि धूल के साथ या विन्दूस्तेप के द्वारा यक्ष्मा दण्डाणु सूँघ लिए जावें तो उनकी तीन गतियाँ होती हैं- पहली तो यह कि उनमें से कुछ मुख में या नासा - ग्रसनी में चिपके रह जावें । दूसरी यह कि उनमें से कुछ निगल लिए जावें और उदरस्थ कर लिए जावें तथा तीसरी यह कि उनमें से कुछ फुफ्फुस में प्रवेश कर जावें । मुख या नासा प्रसनीस्थ दण्डाणुओं को ग्रैविक लसग्रन्थियों में तत्रस्थ लसवहाएँ पहुँचा देती हैं जिसके कारण वे बढ़ने लगती हैं । उदरस्थ यक्ष्मा दण्डाणु उदरस्थ लसग्रन्थियों को विशेषतः संदंश लसप्रन्थियों ( ileo caecal glands ) को पहुँच जाते हैं तथा फुफ्फुस में गये दण्डाणु वृन्तयुस्थ ग्रन्थियों ( glands at the hilum of the lung ) में चले जाते हैं ।
हमने देखा है कि मानवीय प्रकार के दण्डाणु उपरोक्त किन्हीं तीन स्थानों पर जा सकता है। उसके कारण ग्रीवा में कण्ठमाला हो सकती है फुफ्फुस में फौफ्फुसिक यक्ष्मा हो सकती है तथा आन्त्र में आन्त्रक्षय देखी जा सकती है। 1
मुख द्वारा प्रवेश मार्ग का विचार करने पर हम देखते हैं कि यच्मकवकवेत्राणु भी जा सकते हैं । परन्तु यह द्वार विशेषतः गोयच्मकवकवेन्राणु ( mycobacterium bovine ) के द्वारा प्रयुक्त होता है । जो दूध या दूध से निकाला मक्खन या घी
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