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विकृतिविज्ञान यकृत्पाक भी कहा जा सकता है। इसका सञ्चयकाल काफी लम्बा होता है जो इसे ३॥ मास तक ले सकता है। पीतज्वर और रोमान्तिका की रोक के लिए लगाये गये टीकों के कारण औपसर्गिक यकृस्पाक होता हुआ देखा गया है। विगत द्वितीय महायुद्ध में अमेरिकन ३०००० सिपाहियों को पीतज्वर निरोधक जो मानवीय रक्तरस का टीका लगाया गया था उसके १०० दिन बाद उनमें कामला का उदय हो गया। यह इंजेक्शन की सूचियों की अपवित्रता के कारण भी हो सकता है। रक्तरसीय कामला और औपसर्गिक यकृत्पाक दोनों लगभग एक ही व्याधि के दो रूप हैं । कामलाजनक तत्त्व रक्तरस से अलग करना बहुत ही कठिन कार्य है। रक्तरस का एकत्रीकण इसी कारण हानिदायक है। उसे रोकने के लिए उसे नीललोहितातीत किरणों में अनावृत करने की प्रथा भी चल पड़ी है।
औपसर्गिक एकन्यष्टियकणोत्कर्ष (mononucleosis) या ग्रन्थिकज्वर (glandular fever ) भी एक अविरामज्वर है। यह कण्ठ की एक तीव्र अवस्था से आरम्भ होता है। जिसके साथ कुछ निःस्राव या उत्स्राव भी होता है। इस रोग में उच्च संताप होता है। ग्रीवा के पश्चत्रिकोण में स्थित ग्रन्थियाँ काफी फूल जाती हैं तथा जब शुल्बौषधियाँ और कूर्चकि के द्वारा कोई विशेष लाभ दिखलाई न पड़े तो ग्रन्थिकज्वर का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। रक्त का चित्र लेने पर उसमें लसकायाणुओं की वृद्धि मिलेगी। इस रोग में क्लोरोमाइसिटीन द्वारा पर्याप्त लाभ हुआ करता है। ___ तन्द्रिकज्वर (टायफस फीवर ) अविरामज्वर का एक और उदाहरण है। यह जू या चीलर द्वारा उत्पन्न होनेवाला रोग है। यदि इस जीव से मनुष्य की रक्षा करने के लिए स्वच्छता के आयुर्वेदीय नियमों का पालन कर लिया जाये तो यह रोग कदापि उत्पन्न नहीं हो सकता। इसी कारण यूरोप में १९ वीं शताब्दी में रोग का जो रूप था वह आज नहीं है। ___. अविरामज्वर का एक कारण वृक्कमुखपाक (pyelitis) भी होता है। उसके लिए मूत्रपरीक्षा करने पर पूय के कोशा, रक्त के श्वेत कण तथा निर्मोक प्राप्त होते हैं। यह बच्चों में पाया जानेवाला रोग है। यह रोग आन्त्रदण्डाणुजनित ही हो यह आवश्यक न होकर उदरावरण में यक्ष्मा के विक्षतों के कारण भी बन सकती है।
सितरक्तता ( leukaemias ) में भी अविरामज्वर मिलता है। उसके परीक्षण का सुगम उपाय रक्त का चित्र होता है । इसमें रोगी के वर्ण की निष्प्रभता (pallor) भी निदानकारिणी होती है। __ अकणकोशोत्कर्ष ( agranulocytosis ) में भी त्वचा निष्प्रभ होती है पर उसमें निरन्तर ज्वर बना रहता है। रक्त के चित्र द्वारा इसका ज्ञान ठीक-ठीक हो जाता है । इस रोग का कारण आजकल शुल्बौषधियों का अन्धाधुन्ध प्रयोग है।
अस्थि कोटर पाक ( sinusitis) के कारण भी अविराम ज्वरोत्पत्ति हो सकती
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