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ज्वर
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अपरा पर विषमज्वर कीटाणु का क्या प्रभाव पड़ता है इसे डा० घाणेकर ने अपनी पुस्तिका 'औपसर्गिक रोग' में व्यक्त किया है। अपरा ( placenta ) के रक्तस्रोतसों में रक्ताधिक्य तथा रक्त सञ्चार की मन्दगति के कारण कीटाणुओं से उपसृष्ट लालकणों की बहुत बड़ी संख्या यहाँ उपस्थित रहती है । इसके कारण एक तो रक्तप्रवाह में बाधा, पहुंचती है दूसरे इस बाधा का प्रत्यक्ष परिणाम गर्भपात में हो जाता है । साधारणतया अपरा के स्रोतसों की प्राचीर को लाँघ कर विषमज्वर का कीटाणु गर्भ के रक्त में प्रत्यक्ष नहीं आ सकता जैसे कि फिरंगाणु कर सकता है इसलिए सहज फिरंग की भाँति सहज विषमज्वर के रुग्ण कदापि नहीं मिलते पर यदि अपरा में विदार हो जावे तो विषमज्वर के कीटाणु गर्भ पर भी प्रत्यक्ष आक्रमण करने में समर्थ हो जा सकते हैं ऐसा विशेषज्ञों का मत कहा जाता है ।
अन्तःस्रावी ग्रन्थियों में अधिवृक्क ग्रन्थियों में कीटाणुयुक्त लालकणों के कारण केशालावरोध हो जा सकता है । इन ग्रन्थियों में विकृति के कारण ही कुछ तज्ज्ञों के मत से शीताङ्गता ( algidity ) हुआ करती है ।
ऊपर जो कुछ अंगों में होने वाली विकृति का वर्णन किया गया है वह इन विकृतियों के दो ही प्रधान कारणों की ओर हमारा ध्यानाकृष्ट करती है जिनमें एक विषमज्वरकारी कीटाणुओं से लदे रक्त के लाल कणों की तथा इन लाल कणों की शोणवर्तुल का भक्षण करके कीटाणुओं द्वारा उत्पन्न रागक की विविध अंगों में भरमार है और दूसरा जालकान्तश्छदीय कोशाओं की वृद्धि तथा भक्षकायाणूस्कर्ष है । ये दोनों कारण प्लीहा में सर्वाधिक यकृत् में मध्यम तथा अस्थि मज्जा में सबसे कम मात्रा में पाये जाते हैं अन्य अंगों की विकृतियों में प्रथम कारण ही अधिक महत्व रखता है ।
विषमज्वर में रक्तगत जो परिवर्तन देखे जाते हैं उन्हें हम नीचे प्रगट करते हैं।
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(१) लाल कणों में परिवर्तन - विषमज्वर के कीटाणु की मुख्य खुराक रक्त का or a है | अतः इस रोग में इनका जितना नाश देखा जाता है उतना अन्य किसी रोग में नहीं हुआ करता । प्रतिघनसहस्रिमान मारात्मक विषमज्वर में ये लाल कण २० लाख तथा तृतीयक चतुर्थक में ४०-३० लाख इनकी संख्या रहा करती है । लाल कणों के नाश के कारण शरीर में जो व्याधि उत्पन्न होती है उसे रक्तक्षय या अरक्तता ( एनीमिया ) कहा जाता है । विषमज्वर का कीटाणु दो प्रकार से इस अरक्तता को उत्पन्न करता है । एक तो वह प्रत्यक्ष लाल कण को नष्ट करके उसे अपना आहार बना लेता है दूसरे उससे निर्मित रागक के द्वारा रुधिरोद्भावन ( erythropoiesis ) में बाधा उत्पन्न होती है । विषमज्वर के कीटाणुओं के द्वारा लाल कणों का जितना नाश होता है उसके कारण उनके उत्पादन का कार्य भी द्रुतगति से बढ़ता है पर विषमज्वरीय उपसर्ग के कारण लाल कणों की शरीरस्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक मात्रा में उत्पत्ति नहीं हो पाती । रुधिरोद्भावन क्रिया बढ़ने से लाल कणों में जालक कायाणुओं ( reticulocytes ) की प्रतिशतिकता में वृद्धि हो जाती है । जालक
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