________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रक्त परिवहन की विकृतियाँ शैय्या - व्रण ( Bed Sores )
दुर्बल जीवनीय शक्ति से रहित चिरकाल से शैय्याग्रस्त रोगियों में अस्थि के नीचे के धरातलीय ऊतियों के पीडित होने से स्थानिक कोथ की उत्पत्ति होती है । वही शैय्यात्रण कहलाते हैं । यदि इन व्रणों में उपसर्गी जीवाणुओं का प्रवेश हो सका hat फिर प्रपको भी हो सकता है ।
घनास्रता या घनास्रोत्कर्ष ( Thrombosis )
सचेतन - सजीव प्राणी की सिरा, केशिका, धमनिका या धमनी के भीतर जब रक्तबिम्बाणु ( blood platelets) के कारण आतंचन ( रक्तस्कन्दन या रक्तसंहति ) हो जाता है तो उस अवस्था को घनास्त्रोत्कर्ष या घनास्त्रता कहा जाता है । इस क्रिया के परिणामस्वरूप रक्त जम कर एक घनास्त्र ( thrombus ) का निर्माण करता है |
२६३
घनास्र ( thrombus ) और आतंच ( blood clot ) दोनों जमे हुए रक्त के २ रूप हैं । अन्तर यही है कि घनात्र शरीर के भीतर वाहिनी प्राचीर के अभेद्य रहते हुए रक्त के जमने की एक क्रिया है जिसे रक्त बिम्बाणु पूरा करते हैं । आतंच वाहिनी - प्राचीर के फटने पर बहे हुए रक्त की तन्त्वि ( fibrin ) के द्वारा जमा हुआ रक्त है जो शरीर के बाह्य या आभ्यन्तरिक धरातल पर प्रकट होता है ।
घनास्त्रता क्यों होती है ?
attarai का सर्वप्रथम और सर्वोपरि कारण है रक्त की वाहिनी - प्राचीर के अन्तश्छद का रुग्ण या आघातपूर्ण होने से टूट फूट कर खुरदरा हो जाना । जब तक रक्तवाहिनी का अन्तश्छद पूर्ण और सुचिक्कण तथा श्लक्ष्ण होगा रक्त का प्रवाह अविरल गति से होता रहेगा परन्तु ज्यों ही किसी भी कारण से अन्तश्छद में खुरदरापन आया त्यों ही वहाँ पर रक्त के बिम्बाणु अपना आसन जमा लेते हैं । वे उस स्थान पर चिपक जाते हैं और वहाँ आतंचन ( रक्तसंघात ) होकर घनास्रोत्कर्ष हो जाता है । संक्षेप में निम्न कारण घनास्त्रोत्कर्ष के लिए महत्त्वपूर्ण हैं: :
१. अभिघात ( trauma ) - इसके कारण वाहिनी विदीर्ण हो सकती है ( rupture ), बँध सकती है ( ligature ), अथवा अक्ष पर घूम सकती है ( विमोटन - torsion ) । इनके कारण धमनी के आभ्यन्तरीय एवं मध्य के स्तर छिन्न भिन्न हो जाते हैं ।
For Private and Personal Use Only
२. वाहिनी - प्राचीर का व्रणशोथ ( inflammation of the vesselwalls ) - तीव्र या अनुतीव्र जीवाणुजन्य उपसर्ग घनास्र ( internal clotting or thrombosis ) का महत्त्वपूर्ण कारण है । यह धमनियों की अपेक्षा सिराओं पर अधिक प्रभाव डालता है । तीव्र उपसर्गावस्था में जीवाणुओं के विष बाहर से अन्दर सिरा में प्रवेश करते हैं इसके कारण पहले परिसिराशोथ ( periphlebitis ) होकर फिर समग्र सिराशोथ ( panphlebitis ) होता है । परन्तु जब उपसर्ग