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ज्वर १. अभिन्याससन्निपात। २. हतौजस्सन्निपात । - हेमाद्रि ने सन्निपात, अभिन्यास तथा हतौजस् के सम्बन्ध में लिखा है कि जिसमें वातप्रधान रहती है वह सन्निपात कहलाता है और जिसमें कफप्रधान हो उसे अभिन्यास कहते हैं तथा जिसमें पित्तप्रधान हो वह हतौजस कहलाता है। उसने वङ्गसेन का उदाहरण देकर अभिन्यास और हतौजस् का निम्न वर्णन दिया है:निद्रोपेतमभिन्यासं क्षिप्रं विद्याद्धतौजसम् । आचितामाशयकफे सन्निपातज्वरे दृढे । शान्त्येऽप्यवश्यं तस्याशु तन्द्रा समुपजायते। अतिद्रवरसक्षीरदिवास्वप्ननिषेवणात् ॥ . दुर्बलस्याल्पवातस्य जन्तोः श्लेष्मा प्रकुप्यति । वायुमार्गसमावृत्य धमनीरनुसृत्य सः ॥ तन्द्रां सुघोरां जनयेत्तस्या वक्ष्याभि लक्षणम् । उन्मीलितविनिर्भुग्ने परिवर्तिततारके ।। भवतस्तस्य नयने लुलिते चलपक्ष्मणी । विवृता ननदन्तौष्ठं मुहुरुत्तानशायिनः ।। पिच्छिलोच्छिन्नतन्तुश्च कण्ठाच्छलेष्माऽस्य गच्छति। कण्ठमार्गोपरोधश्च वैकृतं चोपजायते ॥ सोऽर्वाक त्रिरात्रात्साध्यः स्यादसाध्यस्तु ततः परम् । त्रयः प्रकुपितादोषा उरःस्रोतोनुगा भृशम् ॥ आमाविबद्धा ग्रथिता बुद्धीन्द्रियमनोगताः । जनयन्ति महाघोरमभिन्यासं महादृढम् ।। प्रध्वस्तगात्रः श्वसिति न चेष्टां काञ्चिदीहते । न च दृष्टिर्भवेत्तस्य समर्था रूपदर्शने ॥ न च गन्धरसस्पर्शशब्दांश्चाप्यवबुध्यते । शिरो लोलयतेऽभीक्ष्णमाहारं नाभिनन्दति ।। कूजते तुद्यते चैव प्रतिपत्तिश्च हीयते। कलं प्रभाषतेऽत्रापि किञ्चित्सन्दिग्धवाक् चिरात् ॥ न वा प्रभाषते किञ्चिदभिन्यासः स उच्यते । प्रत्याख्येयः स भूयिष्ठं कश्चिदेवात्र सिध्यति ।।
निद्रा से युक्त अभिन्यास और उससे हतौजस् सन्निपात बनता है। जब सन्निपात ज्वर में आमाशय से कफ का सञ्चय हो जाता है तो अतिशीघ्र रोगी को तन्द्रा उत्पन्न हो जाती है । कफ की सञ्चिति में अति पतले पदार्थ इक्षुरस, दुग्ध का सेवन दिवास्वप्न करना आदि कारण होते हैं। इन कारणों से अल्पवात दुर्बल जीवों में कफ का कोप हो जाता है और वह कफ वायुमार्ग को आवृत करके धमनियों का अनुसरण करने लग जाता है जिससे घोर तन्द्रा की उत्पत्ति होती है। इसमें आँखें उन्मीलित, निर्भग्न और परिवर्तित तारे वाली हो जाती हैं। नेत्र खुले और पचम चलनशील रहते हैं मुख, दाँत, ओष्ठ सब विवृत होते हैं। वह ऊपर को मुंह करके सोता है कण्ठ से पिच्छिल तन्तु रहित श्लेष्मा जाता है वह कण्ठमार्ग का रोध करके वहाँ विकृति कर देता है। इधर तीनों दोष कुपित होकर उसस्रोतोनुगामी हो जाते हैं। वे आम, विबद्ध और ग्रथित बुद्धि, इन्द्रिय और मन में जाकर घोर अभिन्यासोत्पत्ति करते हैं । इससे शरीर स्तब्ध या ध्वस्त हो जाता है, श्वास तेज चलता है। वह कोई चेष्टा नहीं करता। उसकी आँखें रूपदर्शन के लिए असमर्थ होती हैं। गन्ध, रस, स्पर्श शब्दादि का अवबोध ठीक ठीक नहीं हो पाता। वह सिर को इतस्ततः फेंकता है आहार की उसे इच्छा नहीं होती । कूजन, तोद आदि बराबर मिलते हैं बोलने में भी कुछ विचार रहते हैं। यही अभिन्यास है। ___ हतौजस जिसमें ओज का ह्रास होता है इसे वाग्भट ने सन्निपात के पर्याय के रूप में ही लिख दिया है।
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