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पुनर्निर्माण
२८७ प्रक्षुब्ध करके फिर ध्यानपूर्वक देखने से कर सकते हैं। कनीनिका एक रक्तविरहित अंग है। प्रक्षोभ के कारण वहाँ पर धीरे धीरे २४ घण्टों में समीपस्थ वाहिनियों से बहुन्यष्टि सितकोशा आना प्रारम्भ कर देते हैं वे वहाँ एक सप्ताह तक निवास करते हैं वहाँ पर स्फाय ( oedema) हो जाता है जो धीरे धीरे समाप्त होता है। सातवें दिन समीपस्थ वाहिनियों से ही प्रोतिकोशा निकल कर कनीनिका की मूल ऊति का पुनर्निर्माण करने लगते हैं। इनके दो कार्य होते हैं एक तो ये कोशा के अपद्रव्य (cell debris) को हटाते हैं दूसरे ये स्वयं कनीनिक रुहों (fibroblasts) में या कनीनिक कोशाओं (corneal corpuscles) में ही परिणत हो जाते हैं। यह सब कार्य कोशाओं के प्रचलन से हुआ ऐसा स्पष्ट है। जिन प्राणियों में कनीनिक शुक्लीय संयोज स्थल ( corneoscleral junction ) सवर्ण ( pigmented ) होता है वहाँ सवर्ण कोशा गति करते हुए देखे जाते हैं। ये सम्पूर्ण उदाहरण अवाहिनीय रोपण ( avas cular healing ) के दिये गये हैं। अवाहिनीय रोपण के लिए कोशा प्रचलन परमावश्यक होता है यह इससे जान लेना चाहिए।
किसी भी व्रण के रोपण के लिए जहाँ कोशाप्रचलन एक प्रमुख घटना है वहाँ पुनर्निर्माण में वह कोई प्रविशेष (peculiar ) क्रिया हो ऐसा कदापि न मानना चाहिए । वह तो भ्रूण विकास ( embryonic development ) का मुख्य लक्षण है। उदाहरण के लिए जब अधिवृक्क ग्रन्थि की मजक का निर्माण होता है उस समय प्रगण्ड शिखर (ganglionic crest ) से कोशाओं का प्रचलन होता हुआ देखा जाता है। इसी प्रकार प्रजनन ग्रन्थि (gonad ) के निर्माण में आद्यरोहिकोशाओं (primordial germ cells) का प्रचलन होता है। इस सबसे यह पता लगता है कि प्रचलन को यह शक्ति उन अभिनव उतियों में पाई जाती है जो पूर्णतः भिन्नित ( differentiated ) नहीं हो सकी। यही लक्षण उन कोशाओं के भी होते हैं जो पुनर्निर्माण में भाग लेते हैं।
कोशाओं की प्रचलनावस्था समाप्त होने के पश्चात् कोशाओं के भिन्नन (differentiation of cell type ) का कार्य पूर्ण होना प्रारम्भ होता है। किस स्थान पर कौन कोशा चिपका है और अब उसे क्या करना है उसके अनुसार उसका भिन्नन होता है । अब उसका प्रचलन समाप्त हो जाता है।
अब हम पुनर्निर्माण के सम्बन्ध में कुछ विशेष शब्दों के अन्तर्गत वर्णन करेंगे।
प्रथम रोपण ( healing by first intention ) त्वचा या उपत्वचा की ऊतियों के सामान्य अपूयिक पाटन (incision) का रोपण प्रथम रोपण कहलाता है। जैसे किसी व्यक्ति को अकस्मात् नया ब्लेड लग जावे तो उसके कारण जो व्रण उत्पन्न होगा वह अपूयिक होगा और उसके रोपण का प्रकार प्रथम रोपण माना जाता है। ज्यों ही किसी स्थान पर कुछ लगा कि तुरत वहां की वाहिनियाँ संकुचित हो जाती हैं उसके पश्चात् वे विस्फारित होती हैं और वहाँ से रक्त स्त्राव होने लगता है। व्रण में रक्त जाकर आतंच ( clot) निर्माण कर देता है। यह आतंच व्रण के अन्दर की ऊतियों
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