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पुनर्निर्माण
२६१ क्षतिग्रस्त हो सकते हैं अतः जब व्रण में कणन उति का निर्माण हो जावे तो फिर इन प्रक्षोभक पदार्थों के प्रयोग की कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती। ___ सम्पूर्ण व्रण में कणन ऊति भर जाने के उपरान्त जो कार्य आगे होता है वह है तन्तुरहों की तन्तु कोशाओं ( fibrocytes ) में परिणति । सबसे पहले जो स्तर बनता है उसके तन्तुरूहों का तन्तुकोशा में परिणमन होता है। उसके पश्चात् दूसरे, तीसरे, चौथे स्तरों में वही क्रिया होती है । तथा दूसरा कार्य श्लेषजन (collagen ) तन्तुकों की स्थापना का होना है। यह श्लेषजन क्या है ? यह तान्तव ऊति कोशाओं से निकला हुआ एक प्रोभूजिनीय पदार्थ है जो रूक्ष काचर तन्तुकों ( coarse hyaline fibrils ) के सदृश देख पड़ता है। जालकान्तश्छदीय संस्थान के कुछ कोशाओं से निःसृत होने वाली जालकी ( reticulin ) के संघनन और जरठता के कारण भी श्लेषजन बन जाया करता है। श्लेषजन एक अन्तःकोशीय पदार्थ होता है जिसके निर्माण के लिए जीवति गका निरन्तर पहुँचना अत्यावश्यक है । यदि किसी प्राणी का घाव नहीं भरता है तो सम्भव है कि उसे पर्याप्त मात्रा में जीवति ग न दी गई हो या उसके शरीर में वह उपस्थित न हो । जीवति ग (vitamin C) विरहित व्रण में श्लेषजन के न बनने का प्रमाण यह है कि व्रण में तन्तूत्कर्ष अपूर्ण रह जाता है व्रणवस्तु ( scar tissue ) मृदुल और कोशीय रहती है जिसके कारण उसकी दृढता में कमी आ जाती है।
जब तन्तुरुह का तन्तुकोशाओं में परिणमन. होता रहता है और श्लेषजन का निर्माण निरन्तर जारी रहता है तभी अधिच्छद (epithelium ) भी अन्दर की ओर बढ़ता रहता है। इसके कारण व्रण की चौडाई घट जाती है और गहराई भी कम होने लगती है। इस प्रकार, कणनऊति तान्तवऊति में धीरे धीरे बदलने लगती है । जब तान्तव ऊति में संकोचन ( contraction ) प्रारम्भ होता है तो सम्पूर्ण वाहिनियाँ दब जाती हैं और रक्त की उसस्थान की पूर्ति में कमी आ जाती है। बड़ी बड़ी धमनियों में अभिलोपी अन्तर्धमनीपाक (obliterative endarteritis) हो जाने से वाहिनी मुख शनैः शनैः बन्द हो जाते हैं। यह अन्तर्धमनीपाक वैकारिक क्रिया न होकर प्राकृतिक ऐसी क्रिया है जिसके द्वारा किसी एक स्थान की रक्त पूर्ति को शरीर कम करता है। इस क्रिया का परिणाम होता है तान्तवऊति का अवाहिन्य होकर पाण्डुर वर्ण का हो जाना और त्वचा से कुछ नीची व्रणवस्तु का बनना। जो अधिच्छद उस व्रण वस्तु ( scar ) को आवृत करता है वह भी पूर्ण हो जाता है परन्तु यह स्वाभाविक स्वचा के वर्ण से कुछ भिन्न होता है। यह कुछ पतला भी होता है और न्यधिचर्म ( malpighian layer ) भी अल्पनिर्मित होता है। निचर्म ( dermis ) में स्वेद ग्रन्थियाँ और केश कूपिकाओं ( hair follicles) का पुनर्जनन न होने से न तो वहाँ से स्वेद स्राव ही होता है और न बाल ही उगते हैं। इसी कारण आयुर्वेद में रोमोत्पादन और सवर्णीकरण करने की कुछ विशिष्ट पद्धतियाँ कही गई हैं।
समङ्गीकरण द्वारा रोपण-गहरी ऊतियों में स्थित विक्षतों के रोपण में समङ्गी
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