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ज्वर
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अधिक महत्त्व का लक्षण न होने से चरक और वाग्भट के अतिरिक्त किसी ने इसका
वर्णन नहीं किया |
वेपथु शब्द से ही सुश्रुत ने वातिक ज्वर के लक्षणों का आरम्भ किया है । वेपथुः का अर्थ डल्हण नेकपः दिया है । श्रीवाचस्पति वैद्य ने भी वही माना है । ज्वर के आदि में कँपकँपी बँधना वातज्वर का प्रधान लक्षण है । वेपथु या कम्प स्वयं एक वातिक लक्षण है तथा एक प्रकार का वात रोग भी है :
सर्वाङ्गकम्पः शिरसो वायुर्वेपथुसंज्ञकः ।
सारे शरीर में कम्पोत्पत्ति होना तथा सिर, हाथ, पैर आदि अङ्गावयवों में उसकी विशेष प्रतीति होना वेपथु या सर्वाङ्ग कम्प या कम्प इस नाम से कहा जाता है । वातिक ज्वर में वेपथु एक लक्षण के रूप में पायी जाने वाली वस्तु है । इसका सामान्य भाव कँपकँपी के साथ ज्वर का चढ़ना है ।
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कम्प के पूर्व रोमहर्ष का होना स्वाभाविक है । रोंगटे खड़े होना अस्सी वातविकारों में ही एक विकार भी माना जाता है पर यहाँ यह उपलक्षण के रूप में ही पाया जाता है ।
रोमहर्ष साथ साथ शीतम् या शैत्य का भी एक उपलक्षण देखा जा सकता है । रोगी कहता है कि उसे जाड़ा लगता है । रोंगटा खड़ा हो रहा है तथा अब कँपकँपी बँध रही है । इन तीनों का स्पष्ट भाव यह है कि शरीर में वायु के प्रकोपक कारणों की विद्यमानता और उनको दूर करने वाले प्रहरियों की अनवधानता के कारण वात दोष का प्राबल्य आरम्भ हो गया है और उसका रूक्षः शीतो लघुः सूक्ष्मश्चलोऽथ विशदः खरः में से रौक्ष्य और तत्पश्चात् शैत्य का प्रादुर्भाव होने लग गया है और थोड़े ही समय में सन्तापाधिक्य होकर वातदोषजन्य ज्वर के सभी लक्षण प्रगट हुए जाते हैं । वसवराजयकार ने शीतम्, विदाह और अत्यन्त शैत्यम् ये देखने में परस्पर विरोधी हैं एक ही रोग में एकत्र करके रख दिये हैं । यह है कि आरम्भ में रोगी को ठण्ड लगती है । फिर ज्वर के बढ़ने के साथ दाह बढ़ता है और ज्वर की शान्ति के साथ शरीर अत्यन्त ठण्डा पड़ जाता है । मलेरिया के रोगी की शीत प्रतीति के पश्चात् दाहकता की प्रतीति नहीं मिलती परन्तु वातिकज्वर में शैत्य और कम्प के उपरान्त दाह मिल सकता है ।
तीन लक्षण जो
इसका अभिप्राय
उादित्य ने श्वसन का एक लक्षण दिया है । यह श्वसनकर्म की वृद्धि का लक्षण है। किसी किसी रोगी को श्वासोच्छ्वास गति पर्याप्त बढ़ जाती है जिसे श्वास नाम से भी पुकारा जा सकता है । यह लक्षण सदैव न दिखाई देकर किसी किसी में पाया जाया करता है । शैत्य की अधिकता तथा वात की प्रबलता ही इसका मुख्य हेतु है । शीतपानाशनस्थानरजोधूमातपानिलैः के द्वारा सुश्रुत ने श्वास के निदान के अन्य घटक बतलाते हुए शीतल पान, शीतल खाना और शीतल स्थान का भी उल्लेख कर दिया है ।
वातिक रोगों में निद्रानाश या जागरण जितना अधिक करना पड़ता है उसका
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