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ज्वर
( ४ ) कण्ठग्रहो ज्वरो मूर्च्छा दाहः कम्पो विलापनम् । मोहस्तापः शिरोऽर्तिश्च वातार्तः • प्रलपन् श्वसन् ॥ ( नि. ना. )
(५) मोहदाहौः शिरःकम्पः कण्ठकुब्जश्च मूकता । विलापस्तपनं मूर्च्छा त्वङ्गशैथिल्यकं कफः ॥ छर्दिहिक्का गुम्फनं च ह्युत्तमाङ्गव्यथा ततः ।
स एव सन्निपातोऽयं ज्ञातव्यः कण्ठकुब्जकः ॥ ( चि. )
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( ६ ) शिरोव्यथा दाहहनुग्रहाश्च सन्तापमूर्च्छागलरोधपाकाः ।
प्रवेदनावातभवाः प्रलापाः स कष्टसाध्यः किल कण्ठकुब्जः ॥ ( वै. वि . )
कण्ठकुब्ज सन्निपात का मुख्य लक्षण है तीव्र त्रिदोषज ज्वर के साथ कण्ठ का • उग्र पाक होना जिसके कारण गलरोध होना और ऐसा लगना मानो सैकड़ों शूकों से कण्ठ आवृत हो गया हो। रोगी को अत्यन्त दाह और सिर में वेदना होती है इसके कारण रोगी विलाप या प्रलाप करने लगता है । मोह और कम्प ये दो लक्षण भी इस रोग में आरम्भ से ही साथ रहा करते हैं । कभी कभी रोगी मूच्छित भी होता हुआ देखा जाता है । गले में पाक के साथ ही साथ हनुग्रह भी हो सकता है । वातिकशूल अंग अंग में मिल सकता है । शरीर का तप्त या परितप्त होना भी एक स्वाभाविक सी घटना है । अरुचि, तृष्णा, मूकता, अङ्गशैथिल्य, बमन, गुम्फन, हिक्का और श्वास के लक्षणों में से भी कोई देखने में आ सकता है ।
इनके सूत्र नीचे दिये जाते हैं:
उपर्युक्त १३ सन्निपातों के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों में निम्नलिखित सन्निपातों का और भी नाम आया है ::
१. कुम्भीपाक, २. प्रोर्णुनाव, ३. प्रलापी, ४. अन्तर्दाह, ५. दण्डपात, ६. अन्तक, ७. एणीदाह, ८. अजघोष, ९. भूतहास, १०. यन्त्रापीड, ११. संन्यास, तथा १२. संशोषी ।
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( १ ) कुम्भीपाक - घोणाविवरझर दूबहुशो गासितलोहितं सान्द्रम् | विलुण्ठन्मस्तकमभितः कुम्भीपाकेन पीडितं विद्यात् ॥
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नासा से काले लाल रंग के गाढे रुधिर का बहना तथा मस्तक को इधर उधर लुण्ठित करना इस सन्निपात के दो ही महत्त्वपूर्ण लक्षण माने जाते हैं ।
( २ ) प्रोर्णनाव --- उत्क्षिप्य यः स्वमृङ्गं क्षिपत्यधस्तान्नितान्तमुच्छ्वसिति । तं प्रोर्णुनावजुष्टं विचित्रकष्टं विजानीयात् ॥
उठ उठ कर भूमि पर गिर पड़ना अङ्गों को पटकना तथा जोर जोर से उच्छ्वास लेना प्रोर्णुनाव सन्निपात के मुख्य लक्षण हैं ।
(३) प्रलापी - स्वेदभ्रमाङ्गभेदाः कम्पो दवथुर्वभिर्व्यथा कण्ठे । गात्रञ्च गुर्वतीव प्रलापिजुष्टस्य जायते लिङ्गम् ॥
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