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ज्वर
४४१ (११) यन्त्रापीड-येन मुहुर्चरवेगाद्यन्त्रेणेवावपीडथते गात्रम् ।
रक्तं पित्तञ्च वमेधन्त्रापीडः स विज्ञेयः ।। जो ज्वरी कोल्हू में पेले जाने के समान अनुभव करे और रक्तपित्त से पीडित हो वह मन्यापीड सन्निपात का रोगी होता है। ( १२ ) संन्यास-अतिसरति वमति कूजति गात्राण्यभितश्चिरं नरः क्षिपति ।
संन्याससन्निपाते प्रलपत्युग्राक्षिमण्डलो भवति ॥ अतीसार, वमन, कूजन, गात्रक्षेपण, प्रलाप तथा अत्युग्र नेत्रता इन सात लक्षणों से संन्यास सन्निपात बनता है। (१३) संशोषि-मेचकवपुरतिमेचकलोचनयुगलो मलोत्सर्गात् ।
___ संशोषिणी सितपिडिकामण्डलयुक्तो ज्वरे नरो.भवति । मलोत्सर्ग के साथ शरीर और नेत्र दोनों का काला पड़ जाना तथा शरीर में श्वेत मण्डलों के साथ पिडिकाओं का पाया जाना संशोषी सन्निपात का लक्षण है।
सन्निपातभेदप्रदर्शिका तालिका [तालिका पृ० ४४१ ( क ) पर देखिए ]
सन्निपातों की साध्यासाध्यता सन्धिकस्तन्द्रिकश्चैव प्रलापश्चित्तविभ्रमः । जिहकः कर्णिकश्चैव षट् साध्याश्च प्रकीर्तिताः ।। रुग्दाहमन्तको भुग्ननेत्रं स्यात्कण्ठकुब्जकः । रक्तष्ठीवी शीतगात्रमभिन्यासश्च दारुणाः ।। .
___ सन्निपात इमे सप्ताप्यसाध्याः परिकीर्तिताः ॥ ( बसवराजीय ) सन्धिगस्तेषु साध्यः स्यात्तन्द्रिकश्चित्तविभ्रमः । कर्णिको जिह्वकः कण्ठकुब्जः पञ्चापि कष्टकाः ।। रुग्दाहस्त्वतिकष्टेन संसाध्यस्तेषु भाषितः। रक्तष्ठीवीभुग्ननेत्रः शीतगात्रः प्रलापकः॥
अभिन्यासोऽन्तकश्चैते पडसाध्याः प्रकीर्तिताः ।। ( भा. प्र.) उपर्युक्त विवरण के अनुसार एक शास्त्रकार ने संधिक, तन्द्रिक, प्रलापक, चित्तविभ्रम, जिह्वक और कर्णिक इन ६ सन्निपातों को साध्य माना है जब कि दूसरे ने सन्धिक को सुखसाध्य और तन्द्रिक, चित्तविभ्रम, कर्णिक, जिह्वक और कण्ठकुब्ज को कष्टसाध्य माना है तथा रुग्दाह को अतिकष्टसाध्य गिना कर कुल ७ सन्निपातों को साध्यता प्रदान की। जहाँ पहले ने ६ को साध्य और ७ को असाध्य माना है वहीं दूसरे ने ७ को साध्य
और शेष ६ (रक्तष्ठीवी, भुननेत्र, शीतगात्र, प्रलापक, अभिन्यास) को असाध्य माना है। महत्त्वपूर्ण यह है कि बसवराज ने जहाँ प्रलापक को साध्य कहा है वहाँ भावमिश्र ने उसे असाध्य माना है। कण्ठकुब्ज को भावमिश्र ने कष्टसाध्य में गिना है पर बसवराज उसे असाध्य मानता है। हमने जो सन्निपातों में प्राप्त लक्षणों के आधार पर तालिका प्रस्तुत की है उसे देखकर बड़ी सरलता से साध्यासाध्यता की गुत्थी को • सुलझाया जा सकता है।
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