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विकृतिविज्ञान
स्वेद, भ्रम, शरीर में भेदन सदृश शूल, कम्प, आँखों में जलन, वमन, कण्ठ में व्यथा, शरीर का भारीपन ये ८ लक्षण प्रलापी सन्निपात में पाये जाते हैं ।
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( ४ ) अन्तर्दाह—अन्तर्दाहः शैत्यं बहिः श्वयथुररतिरपि तथा श्वासः । अङ्गमपि दग्धकल्पं सोऽन्तर्दा हार्दितः कथितः ॥
शरीर के भीतर दाह, बाहर शैत्य, शोथ, अरति, श्वास, शरीर दाह के कारण जलता हुआ सा इन ६ लक्षणों से अन्तर्दाह सन्निपात पहचाना जा सकता है ।
(५) दण्डपात - नक्तन्दिवा न निद्रामुपैति गृह्णाति मूढधीर्नभसः । उत्थाय दण्डपाती भ्रमातुरः सर्वतो भ्रमति ॥
निद्रा का न आना, मूढधी होकर आकाश को हाथ से पकड़ने का यत्न करना तथा भ्रम से आतुर होना इन ३ लक्षणों द्वारा दण्डपात सन्निपात का पता चलता है ।
( ६ ) अन्तक - सम्पूर्यते शरीरं ग्रन्थिभिरभितस्तथोदरं मरुता । श्वासातुरस्य सततं विचेतनस्यान्तकार्तस्य ॥
यह अन्तक पिछले अन्तक से भिन्न है । इसमें सम्पूर्ण शरीर में गाँठे निकलती हैं, वायु का आध्मान पेट में व्याप्त रहता है, रोगी की श्वसन क्रिया बढ़ जाती है तथा वह विसंज्ञता के कारण निश्चेष्ट पड़ा रहता है । ग्रन्थि, आध्मान, श्वासाधिक्य तथा चेतनाहीनता के चार लक्षणों से इसका पता चलता है ।
(७) ऐणीदाह - परिधावतीवगात्रे रुक्पात्रे भुजङ्गपतङ्गहरिणगणः । वेपथुमतः सदाहस्यैणीदाहज्वरार्तस्य ॥
इस सन्निपात में रोगी के शरीर में हिरन, पतन, साँप दौड़ रहे हों ऐसा उसे अनुभव होता है तथा ज्वर, दाह और कम्प होता है ।
( ८ ) हारिद्रक - यस्याऽतिपीतमंगं नयने सुतरां मलस्ततोऽप्यधिकम् । दाहोऽतिशीतता बहिरस्य स हारिद्रको ज्ञेयः ॥
शरीर, आँखें और मल जिसका एक से बढ़ कर दूसरा अधिक पीला हो जावे अन्दर दाह और बाहर शैत्य हो वह हारिद्रक सन्निपात का रोगी जानना चाहिए ।
( ९ ) अजघोष - छगलकसमानगन्धः स्कन्धरुजावान्निरुद्धगलरन्ध्रः । अजघोषसन्निपातादाताम्राक्षः पुमान् भवति ॥
अजघोष सन्निपात में शरीर से बकरे की गन्ध आती है । कन्धों में दर्द होता है गला रुंध जाता है और आँखें ताम्र वर्ण की हो जाती हैं ।
(१०) भूतहास - शब्दादीनधिगच्छति न स्वान्विषयान्यदिन्द्रियग्रामैः । हसति प्रलपति परुषं स ज्ञेयो भूतहासार्तः ॥
इन्द्रियाँ जब अपने विषयों को ग्रहण करने में असमर्थ हो जावें और रोगी कभी जोर से हँसे वा रोवे तो उसे भूतहासात सन्निपात से पीडित मान लेना चाहिए ।
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