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ज्वर
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इस कथन से और कफज्वर में छर्दि का लक्षण प्रकट तथा देखने से हमें आधुनिकों के इस विचार को समझने का स्वयं प्रोत्साहन मिल जाता है कि शरीर स्वयं ही एक बहुत बड़ा चिकित्सक है। इससे एक दूसरा यह भी निष्कर्ष निकलता है कि विकार विशेष के वर्णन के साथ-साथ जो कुछ लक्षण समूह लिखे जाते हैं वे सभी रोग के दूषण के परिणामस्वरूप नहीं होते अपि तु उनमें से कुछ तो निश्चित रूप से विकारकारी दूषण का प्रतिरोध करने के लिए स्वयं शरीर चिकित्सक के द्वारा उपस्थित किए प्रतिरोधक लक्षण हैं।
कफज ज्वर में जो वमन उत्पन्न होता है वह कफ के प्रकोप के कारण से ही होने के कारण कफज ही होता है। कफज छर्दि के निम्न लक्षणों के साथ यदि हम कफज्वर के लक्षणों की तुलना करें तो कितना साम्य मिलता है
तन्द्रास्यमाधुर्यकफप्रसेकसन्तोषनिद्रारुचिगौरवार्तः।
स्निग्धं घनं स्वादु कफाद्विशुद्धं सरोमहर्षोऽल्परुजं वमेत्तु ॥ ऐसा ज्ञात होता है मानो कफज्वर की वान्ति का ही मूर्तरूप यह कफज वमन हो । पर दोनों में थोड़ा अन्तर है इसमें ज्वर का लक्षण नहीं दिया गया। कफज छर्दि के लिए ज्वर का होना अनिवार्य नहीं पर कफजज्वर में जो छर्दि होगी उसमें कफज छर्दि के सब लक्षण मिल सकते हैं। कफज छर्दि प्रत्येक कफजज्वर में रहे यह कोई अनिवार्य नहीं।
परन्तु वमन या वमन की छोटी बहिन मतली जिसे हृल्लास या उत्क्लेश अथवा उत्क्लेद संज्ञा दी जाती है अवश्य ही कफज्वर में पाया जाने वाला लक्षण है। मुख मीठा है सिर भारी है हिलने डोलने में दर्द होता है। तृप्ति बनी हुई है कफ का प्रकोप हो रहा है तो जी मचलाना नितान्त स्वाभाविक घटना होकर रहती है। कफ का एक स्थान शिर भी है। शिर के अन्दर जब कफ का कोप होता है तो शिर भारी हो जाता है और कफाधिक्य के कारण शिरस्थ केन्द्रों पर कुछ पीडन बढ़ने लगता है जिसका प्रत्यक्ष परिणाम आरम्भिक उत्क्लेश में तथा जब पीडन अत्यधिक बढ़ता है तो वमन में होता है।
कश्यप ने कफ के स्थान गिनाते हुए लिखा हैमेदः शिर उरोग्रीवा सन्धिर्बाहुः कफाश्रयः । हृदयं तु विशेषेण श्लेष्मणः स्थानमुच्यते ॥
उसके मत से मेदो धातु, शिर, उरस् , ग्रीवा, सन्धियाँ और बाहु ये कफ के आश्रय हैं तथा हृदय विशेष रूप से कफ का स्थान कहा जाता है । हृदय के भारी होने पर या अवसादित होने पर वमन बनती है। उत्क्लेश भी हृदय में बेचैनी का प्रमाण है। इसी को लक्षण में लेकर गंगाधर ने हृल्लास की व्याख्या बतलाते हुए लिखा है
हृल्लासो हृदयस्थ कफस्योपस्थिति वमनमिव हृल्लास वमन के समान हृदय के कफ की उपस्थिति को प्रकट करता है। उत्क्लेदः कण्ठोपस्थितवमनत्वमिव ऐसा वर्णन मधुकोश व्याख्याकार ने दिया है। उत्क्लेद में गले तक वमन आ गई और अब हुलकार आकर रहेगी ऐसी स्थिति हो जाती है । उत्क्लेशः श्लेष्मनिष्ठीवनम् ऐसा डल्हण मानता है प्रसेक को लालास्राव मानता है।
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