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ज्वर
नहीं कर पाता। परीक्षा काल में विद्यार्थी जब बहुत सबेरे नींद छोड़ कर उठते हैं तो वह उत्साह नहीं होता जो प्राकृतिक निद्रा लेने के उपरान्त आया करता है। अपि तु भयवश अध्ययन निमग्न वे हो जाते हैं। इसी भय के कारण वे रात्रिभर स्वप्न देखा करते हैं। निद्रालुता या तन्द्रा के उपरान्त निद्रा का सुखपूर्वक उपयोग परमावश्यक है और जब यह सम्भव नहीं तो इन्द्रियार्थों में असम्प्राप्ति रहे विना मानेगी नहीं। तन्द्रा में निद्रातस्येव अर्थात् निद्रा से पीडित के समान चेष्टाएँ हुआ करती हैं।
कफज्वर जिसमें निद्रा और तन्द्रा दोनों का राज्य हो वहाँ उत्साह नामक जन्तु अपने दर्शन देने में असमर्थ रहता है। वहाँ आलस्य नामक जीव ही व्याप्त हुआ रहता है। गात्रगुरुता के साथ साथ हमने आलस्य का विचार दिया है। सुश्रुत शारीर का समर्थस्याप्यनुत्साहः कर्मस्वालस्यमुच्यते को भी भूलना नहीं चाहिए कि कार्य करने में समर्थ होते हुए भी कार्य करने में अनुत्साह आलस्य कहलाता है। हट्टे कट्टे मोटे ताजे भिखमङ्गे भारत में इस आलस्य की यथार्थ मूर्ति हैं जो समर्थ होते हुए भी कर्म करके जीविकोपार्जन से दूर रह कर आलस्य में जीवन व्यतीत करते हैं।
स्तम्भः कफज्वर का एक ऐसा लक्षण है जिसे चरक, वाग्भट और डल्हण द्वारा व्यक्त किया गया है। गङ्गाधर कविराज ने स्तम्भः शरीरस्य पुरीषस्य च के द्वारा शरीर का स्तम्भित रहना तथा मल का स्तब्ध रह जाना ये दोनों माने हैं। मधुकोशकार ने अङ्गस्तब्धता मात्र को स्तम्भ माना है। कफज्वर के अतिरिक्त वातकुण्डलिका, कफविधि, कर्दमविसर्प, सर्वाङ्गाश्रय वातव्याधि', वाताधिक वातरक्त आदि में भी स्तम्भ का लक्षण कहा गया है। अन्तरायाम में नेत्रों में स्तब्धता हो जाती है। उरुस्तम्भ में ऊरुओं में स्तम्भ पाया जाता है वातज गृध्रसी में स्फिक्-कटि पृष्ठ-ऊरुजानु-जचा और पैरों तक स्तम्भ पाया जाता है । __श्लेष्मा के साम्य लक्षणों में एक है स्थिरत्व और दूसरा सन्धि बन्धन है । जब श्लेष्मा का प्रकोप होता है तो यह स्थिरता और अधिक बढ़ जाती है और सन्धियों तक व्याप्त हो जाती है जिसके कारण पैर का उठाना या हाथ का चलाना कठिन हो जाता है । स्थिरता के कारण सब अंग बंध जाते हैं। एक तो रोगी ज्वर से पीडित है दूसरे निद्वालु है तीसरे उसमें अङ्ग प्रत्यंगों में स्थिरता बढ़ रही है। इस कारण सम्पूर्ण गात्र श्लथ हो जाता है उसी को स्तब्धता शब्द से व्यक्त किया गया है।
गंगाधर ने आङ्गिक स्तब्धता के साथ मल की स्तब्धता की ओर भी सङ्केत किया है। परन्तु हारीत द्वारा लिखित विष्टब्धं मलवृत्ति के अतिरिक्त किसी भी आचार्य ने मल के स्तम्भ की ओर कोई विशेष सङ्केत नहीं किया है। यह सत्य है कि कफ सोम का प्रतीक और पित्त आधिक्य का प्रतीक होने के कारण एक शीत और दूसरा उष्ण है। इसके कारण दोनों परस्परविरोधी क्रियाएँ सम्पादित करते हैं। पित्त को हम पहले लिख चुके हैं कि वह अतीसारकारक है अतः उसका विरोध मलस्तम्भकारी होगा इस
१. सर्वाङ्गसंश्रयस्तोदभेदस्फुरण भञ्जनम् । स्तम्भनाक्षेपणस्वापसन्ध्याकुञ्चनकम्पनम् ॥
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