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ज्वर
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अब हम कफज्वर के सम्बन्ध की विविध शारीरिक विकृतियों का विचार शास्त्रदृष्टया एक-एक करके करेंगे।
युगपदेव केवले शरीरे ज्वरस्याभ्यागमनमभिवृद्धिर्वायह लक्षण हमारे सामने है । यह चरकोक्त है। इसका अर्थ यह है कि कफज्वर सम्पूर्ण शरीर में युगपत् ( एक साथ) उत्पन्न होता है । सिर में जब कफज्वर की गर्मी आती है तभी पैरों में भी पहुँचती है। तथा यदि इसकी वृद्धि होनी होती है तो वह भी युगपत् ही होती है। स्थानीय परिस्थियों को छोड़ कर शरीर भर में यदि थर्मामीटर से बुखार नापा जावे तो वह एक बराबर ही मिलेगा।
कफज्वरोत्पत्ति में काल की दृष्टि से विचार करने पर१. भोजन के तुरत बाद।
२. सबेरे के समय। ३. रात्रि के प्रथम प्रहर में सन्ध्या के तुरत बाद। ४. वसन्त ऋतु में । कफज्वर पैदा होता या बढ़ता है। ज्वरी के उपस्थाता को पूछा जा सकता है कि उसे ज्वर दिनरात्रि में किस समय चढ़ता या बढ़ता है। यदि वह पूर्वाह्न या पूर्व रात्रि अथवा भोजनोपरान्त कहे तो कफज्वर है ऐसा ले सकते हैं।
सुश्रुत ने सूत्रस्थान के २१ वें अध्याय में इन्हीं कालों को श्लोकबद्ध करके रख दिया है:
स शीतैः शीतकाले च वसन्ते च विशेषतः । पूर्वाले च प्रदोषे च भुक्तमात्रे प्रकुप्यति ॥
कफ शीतल पदार्थों से शीतकाल ( श्लेष्मणः शिशिरादिषु ) में तथा विशेष करके. वसन्त ऋतु में, पूर्व दिन या पूर्व रात्रि में अथवा भोजन करते ही कुपित होता है।
कफज्वर के सम्बन्ध में लगभग ४० प्रकार के लक्षण विभिन्न शास्त्रज्ञों ने बतलाये हैं । इन लक्षणों में से अधिकतर एक दूसरे से मिलते जुलते हैं। दो एक लक्षण परस्पर विरोधी भी हैं। ये सब लक्षण जब एक साथ अध्ययन के विषय बनते हैं तो स्पष्टतः इस बात का संकेत हो जाता है कि प्राचीनों ने कफज्वर नाम से एक सुस्पष्ट लोक में बहुधा पाये जाने वाले ही किसी ज्वर का वर्णन किया था। वह ज्वर आज भी पाया जाता है और थोड़ा विचारपूर्वक देखने वाला कोई भी आधुनिक इसे पहचान सकता है । अब हम विविध लक्षणों का विचार करते हैं जैसा पहले किया गया है।
गुरुगात्रता वह सबसे पहला लक्षण है जो किसी भी कफज्वर से पीडित रोगी में सरलतया ढूंढा जा सकता है। गुरुता, गात्रगरुता या गौरव ये तीनों पर्यायवाची शब्द हैं। इनका प्रयोग कफज व्याधियों में ही अधिक होता है। रोगी को अपना शरीर बहुत भारी मालूम पड़ता है इसके कारण वह करवट नहीं ले सकता, कोई अङ्ग उठा नहीं सकता। सिर उठाने में बहुत भार का अनुभव होता है। इसी को उग्रादित्य ने अतीव शिरोगुरुत्वम् और वसवराज ने शिरोऽतिः कह कर पुकारा है। शरीर का सम्पूर्ण रूप से भारी होना अथवा उसके किसी एक अंग का भारी होना यह सब कफज लक्षणों में ही आते हैं। सिर का भारी होना भी इसी का एक अंग है । शरीर के. भारीपन में शरीर के प्रत्येक भाग में हलकी-हलकी पीड़ा का अनुभव होने लगता है।
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